यमुनानगर : शहरी क्षेत्र में ससौली, तीर्थनगर, दड़वा सहित कई जगह कुम्हार दिवाली के लिए पंचकूला के कक्कड़ माजरा व छछरौली के बलाचौर से मंगवाई मिट्टी से दीये तैयार कर रहे हैं। साथ ही विभिन्न रंगों से दीयों की रंगत भी बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा कोलकाता व गुजरात से मिट्टी व पीओपी में गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां व हटड़ियां मंगवाई हैं।नगर निगम यमुनानगर-जगाधरी क्षेत्र में ससौली, तीर्थनगर, दड़वा सहित कई कॉलोनियों व गांवों में एक तो कहीं दो से तीन कुम्हार परिवार दीये बनाने का कार्य कर रहे हैं। हालांकि पहले यहां कला से जुड़े सैकड़ों कुम्हार थे, पर मिट्टी की उपलब्धता व महंगी होने के साथ अन्य परेशानियों को देख अधिकांश कुम्हार मिट्टी कला को छोड़कर अन्य काम धंधे में लग गए हैं।
यही स्थिति जिले के अन्य ग्रामीण इलाकों में है। ससौली रोड निवासी प्रिंस ने बताया कि स्थानीय स्तर पर कहीं भी चिकनी मिट्टी नहीं मिली, इसलिए पंचकूला के कक्कड़ माजरा से महंगी मिट्टी मंगवानी पड़ी। इस मिट्टी के दाम में स्थानीय मिट्टी के दाम से तीन से चार हजार रुपये अतिरिक्त खर्च आ रहा है।मिट्टी का घोल तैयार कर इलेक्ट्रिक चॉक पर छोट, मध्यम व बड़े दीये तैयार किए जा रहे हैं। जिसे भट्टी में उपले जलाकर पकाया जाता है। ईंधन के रूप में उपला पहले एक रुपये का था, पर अब वो भी तीन रुपये में पड़ रहा है। लागत अधिक आती देख काफी कुम्हार कला जोड़ अन्य काम करने लगे हैं। जो कुम्हार अभी भी कला से जुड़े हैं, वह भी नुकसान झेल रहे हैं, पर आजीविका का अन्य कोई साधन न होते देख कला से जुड़े हैं।तीर्थनगर के शिवकुमार ने बताया कि आसपास चिकनी मिट्टी नहीं मिली तो छछरौली के बलाचौर से मिट्टी मंगाई और दीये बना रहे हैं। लेकिन आसपास के लोग भट्टी चलाने पर एतराज करते हैं, जिसकी कई लोग शिकायत कर चुके हैं। अब भट्टी घर की दूसरी मंजिल पर रख काम चला रहे हैं, लेकिन अलग साल में यह कला छोड़ने का मन बना चुके हैं।कुम्हारों ने बताया कि दिवाली पर दीयों के साथ पहले मिट्टी से ही गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां और हटड़ियां तैयार करते थे, लेकिन इसमें ग्राहकों को जो सफाई चाहिए वह नहीं आती। इस कारण मूर्तियां व हटड़ियां नहीं बना रहे। मूर्तियां व हटड़ियां कोलकाता व गुजरात से होल सेलर मंगवाते हैं, जिनसे कुम्हार लाकर बेचते हैं।इस बार भी मूर्तियां व हटड़ियां मंगवाई है, जो मिट्टी व पीओपी से बनी हैं। इनमें मांग पीओपी की मूर्तियों व हटड़ियों की रहती है। उन्हें दीयों के साथ बेचने के लिए बाजार में अगले दो तीन तीन में फड़ियां व स्टॉल लगाएंगे। इनमें छोटे दीये दस रुपये में 12 और मध्यम आकार के दीया पांच रुपये और बड़े आकार का दीया दस रुपये का है। मूर्तियां व हटड़ियां 50 रुपये से 500 रुपये तक की हैं।प्रतिस्पर्धा के चलते सजा रहे दीये|बाजार में फैंसी दीये भी आ रहे हैं, जो देखने में दीये के आकार के हैं, पर बने प्लास्टिक, मेटल व अन्य धातु के हैं। यह मोमबत्ती या सेल के जरिए लाइट से रोशनी देते हैं। इन दीयों के चलन में आने के बाद कई कुम्हार अपने मिट्टी के बनाए दीयों की भी रंगत बढ़ाने लगे हैं। इन दीयों में विभिन्न रंगों व अन्य सजावट के सामान से सजाकर साधारण दीयो से अधिक दाम पर बेच रहे हैं। कुम्हारों के अलावा कई युवा भी दीये खरीद उन्हें सजाने की कला से जुड़कर दिवाली पर बेचने के प्रयास में हैं।