Suprabhat News

दिल्ली में अपनी खोई हुई राजनीतिक स्थिति को फिर से हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस, और क्यों पार्टी 11 साल पुरानी घटनाओं को फिर से उजागर कर रही है।

दिल्ली : विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की उम्मीदें कांग्रेस पार्टी की रणनीति पर निर्भर हैं, विशेष रूप से राहुल गांधी की भूमिका पर। उनकी दिल्ली चुनावी अभियान में सक्रियता, न केवल प्रदेश नेतृत्व बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों की भी निगाहों में है। कांग्रेस ने अब तक अपनी चुनावी तैयारियों में आक्रामक रुख अपनाया है, और यदि पार्टी नेतृत्व इसे आगे बढ़ाने का प्रयास करता है, तो यह चुनाव और भी दिलचस्प हो सकता है। खासकर यह देखना होगा कि राहुल गांधी सत्तारूढ़ सरकार को किस तरीके से चुनौती देते हैं।कांग्रेस पिछले दस सालों के शासन की विफलताओं को लेकर आक्रामक प्रचार करने में सफल रही है और लोगों को यह संदेश देने में कामयाब रही है कि पार्टी इस बार पूरे जोश के साथ मैदान में है। इस अभियान को और मजबूती और गति पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व से मिलेगी, क्योंकि पार्टी के निर्णयों में राहुल गांधी की सलाह को अंतिम माना जाता है। दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को दो अन्य मुख्य राजनीतिक दलों के खिलाफ मुकाबला करना होगा।कांग्रेस को अपनी पुरानी भूलों को याद करना भी जरूरी होगा, खासकर 2008, 2013 और 2015 के चुनाव परिणामों के संदर्भ में। 2008 में 40.3 प्रतिशत वोट के साथ कांग्रेस ने 43 सीटें जीती थीं, लेकिन 2013 में उसका वोट शेयर घटकर 24.7 प्रतिशत हो गया और पार्टी महज 8 सीटें ही जीत पाई। फिर 2015 में कांग्रेस दिल्ली में शून्य पर सिमट गई, और 2020 में भी पार्टी का वोट शेयर घटकर सिर्फ 4.3 प्रतिशत रह गया। हालांकि, 2014 से 2024 तक लोकसभा चुनावों में पार्टी ने ठीक-ठाक वोट प्रतिशत हासिल किया, पर वह कभी भी सीट जीतने की स्थिति में नहीं आ पाई।कांग्रेस ने 2015 के बाद से दिल्ली में अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष किया है, और यह स्थिति 2024 में भी देखी गई, जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लगभग 24 प्रतिशत वोट मिला। अब दिल्ली में अपनी खोई हुई स्थिति को पुनः स्थापित करने के लिए, कांग्रेस पुराने समीकरणों और गढ़ों पर फिर से जोर दे रही है। सलीमपुर जैसे इलाके जहां मुस्लिम, दलित और फॉरवर्ड वर्ग का गठजोड़ पार्टी के समर्थन को बढ़ा सकता है, पर भी ध्यान दिया जा रहा है। कांग्रेस ने 1998, 2003 और 2008 में दिल्ली में सफलता प्राप्त की थी, लेकिन 2013 के बाद राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया। अब यह देखना होगा कि कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को वापस प्राप्त करने में कितनी सफल होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *