लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हमेशा से देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की पक्षधर रही है, और यह मुद्दा जनसंघ के समय से पार्टी के एजेंडे का हिस्सा है। जब से बीजेपी सत्ता में आई है, तब से इस मुद्दे पर पार्टी ने लगातार जोर दिया है। बीजेपी ने राम मंदिर, अनुच्छेद 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों को अपने राजनीतिक एजेंडे में प्रमुख स्थान दिया था। राम मंदिर का सपना साकार हो चुका है, अनुच्छेद 370 समाप्त किया जा चुका है, और अब केवल समान नागरिक संहिता को लागू करना बाकी है, जिसे बीजेपी और मोदी सरकार के लिए एक अहम चुनौती माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग साफ हुआ, और मोदी सरकार ने संसद के माध्यम से अनुच्छेद 370 को समाप्त किया। इसके अलावा, संसद में “एक देश, एक चुनाव” की दिशा में भी कदम उठाए गए हैं। अब समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए बीजेपी ने एक नई रणनीति बनाई है। पार्टी इस मुद्दे को संसद के बजाय राज्य विधानसभा के जरिए आगे बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है, जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अपने बयान में संकेत दिया था।अमित शाह ने राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान समान नागरिक संहिता के महत्व को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता की बात की गई है, लेकिन यह अब तक देश में लागू नहीं हो पाई है। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस को दोषी ठहराया, यह कहते हुए कि जवाहरलाल नेहरू ने मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू किया और कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति शुरू की। अमित शाह ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की बात की है, लेकिन कांग्रेस ने इसे टाल दिया। उदाहरण स्वरूप, उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में बीजेपी सरकार ने यूसीसी लागू किया है, और इसी मॉडल को अपनाकर बीजेपी शासित अन्य राज्यों में भी इसे लागू किया जाएगा।समान नागरिक संहिता का उद्देश्य यह है कि देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून हो, जो विवाह, तलाक, संपत्ति वितरण और अन्य पारिवारिक मामलों को लेकर समान रूप से लागू हो। वर्तमान में, मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम समुदाय अपने पारिवारिक मामलों का समाधान करता है, लेकिन समान नागरिक संहिता लागू होने पर सभी समुदायों के लिए एक समान कानून होगा। बीजेपी का मानना है कि यह कदम देश की धर्मनिरपेक्षता और समानता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने संविधान पर चर्चा करते हुए कहा था कि देश को एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है और यह गलत कानूनों का स्थान आधुनिक समाज में नहीं है।अमित शाह ने उत्तराखंड की तरह अन्य बीजेपी शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने की योजना को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करने के लिए विधानसभा के माध्यम से प्रयास किए जाएंगे। उत्तराखंड में बीजेपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान यूसीसी लागू करने का वादा किया था, और अब अन्य बीजेपी शासित राज्यों में इसे लागू करने की तैयारी की जा रही है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में इस बात की घोषणा की है, और राजस्थान तथा गुजरात जैसी राज्य सरकारें भी इस दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।बीजेपी के लिए यह रणनीति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल अपने शासित राज्यों में यूसीसी लागू करने का अवसर देती है, बल्कि विपक्षी दलों पर राजनीतिक दबाव भी बना सकती है। बीजेपी के शासित राज्यों में गोवा पहले से ही यूसीसी लागू कर चुका है, और उत्तराखंड में भी इसे लागू किया जा चुका है। अगर बीजेपी इन राज्यों में समान नागरिक संहिता को लागू करने में सफल हो जाती है, तो यह पूरे देश के लिए एक आदर्श बन सकता है।हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ चुनौतियां भी हैं। एनडीए के सहयोगी दल, जैसे जेडीयू और टीडीपी, इस मुद्दे पर बीजेपी के साथ नहीं हैं। इसके अलावा, बीजेपी को संसद में यूसीसी के बिल को पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में मुश्किल लगती है। इसलिए, बीजेपी ने संसद के बजाय राज्य विधानसभा के रास्ते पर बढ़ने का निर्णय लिया है, ताकि राज्यों में इसे लागू करने का मार्ग तैयार किया जा सके।इस रणनीति के माध्यम से, बीजेपी अपने शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करने की कोशिश करेगी, और बाद में अन्य राज्यों में इसे लागू करने के लिए दबाव बनाएगी। अगर यह प्रयास सफल होता है, तो यह बीजेपी के लिए एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि हो सकती है और देश में समानता और धर्मनिरपेक्षता के एजेंडे को साकार करने की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है।