दिल्ली : उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन संबंधों के लिए दी गई सहमति का मतलब यह नहीं है कि किसी के निजी पलों को रिकॉर्ड करने और सोशल मीडिया पर साझा करने की इजाजत भी दी गई है। न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने बलात्कार के आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि सहमति का दायरा निजी तस्वीरों या वीडियो के दुरुपयोग और शोषण तक नहीं फैलता। अदालत ने 17 जनवरी को दिए अपने फैसले में कहा कि भले ही शिकायतकर्ता ने किसी समय शारीरिक संबंधों के लिए सहमति दी हो, लेकिन इसे उनकी आपत्तिजनक वीडियो बनाने या सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की सहमति के रूप में नहीं समझा जा सकता। यौन संबंधों के लिए सहमति, किसी व्यक्ति के निजी पलों का शोषण करने या अपमानजनक तरीके से पेश करने की अनुमति नहीं देती।