गुजरात : 24 साल पहले, 51वें गणतंत्र दिवस की सुबह, जब देशभर में स्कूलों में ध्वजारोहण के उत्सव हो रहे थे, तब अचानक एक भयंकर भूकंप ने गुजरात के भुज और उसके आसपास के इलाके को चीर डाला। 26 जनवरी 2001 को सुबह के 8:46 बजे के आस-पास, 7.7 की तीव्रता वाले इस भूकंप ने पूरे इलाके को हिला दिया और 13 हजार से ज्यादा जानें ले लीं। भुज, भचाऊ और अंजार के कई गांवों में भयंकर तबाही मच गई। इस त्रासदी के बाद, भुज के लोग हर साल 26 जनवरी की रात को जागते हैं, क्योंकि यह हादसा अब तक उनकी यादों में ताजा है। हालांकि, सरकार ने राहत कार्यों में तेजी से कदम उठाया और कई क्षेत्रों में पुनर्निर्माण कार्य के बाद स्थिति में सुधार आया, लेकिन उस दिन का दर्द अभी भी लोगों के दिलों में है।गुजरात भूकंप के नाम से मशहूर यह हादसा, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भुज के पुनर्निर्माण कार्य में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद, राज्य की राजनीति में एक अहम मोड़ साबित हुआ। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सहायता से और राज्य सरकार के युद्धस्तर पर प्रयासों से भुज में धीरे-धीरे पुनर्निर्माण कार्य हुआ। इस त्रासदी के स्मरण में भुज में एक स्मृति वन भी स्थापित किया गया है, जो इस भूकंप के बाद के संघर्ष और साहस को प्रदर्शित करता है।रतनाल गांव के एक निवासी ने बताया कि वे उस दिन सुबह दूध देने के बाद अपने गांव लौट रहे थे, जब अचानक भूकंप आया। बस के अंदर थोड़े झटके महसूस हुए, लेकिन जैसे ही बस रुकी और वे अंजार पहुंचे, तो वहां की स्थिति भयावह थी। पूरा अंजार जमीदोंज हो चुका था और वहां लोगों की चीख-पुकार सुनाई दे रही थी। उन्होंने पैदल यात्रा की और भुज पहुंचे, जहां भी तबाही का मंजर था। उनके अनुसार, यह हादसा वे कभी नहीं भूल सकते।मोसाणा गांव के एक व्यक्ति ने बताया कि वे उस दिन गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में थे, जब भूकंप आया। वे अपने पोते के साथ बैठे थे, तभी धरती कांपी और सभी लोग गिर पड़े। घायलों को जल्द से जल्द इलाज के लिए भेजा गया और सेना ने राहत कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।यह हादसा भुज के लोगों के दिलों में आज भी एक गहरी छाप छोड़ चुका है, और हर साल 26 जनवरी की रात को उनकी आंखों में वही डर और अविस्मरणीय यादें जीवित हो जाती हैं।