मध्य प्रदेश : भोपाल भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी का कहना है कि भाषाओं और माताओं का सम्मान उनके बच्चों के योगदान से ही बढ़ता है। इसलिए भारतीय भाषाओं को उचित पहचान दिलाने के लिए हमें खुद पहल करनी होगी। प्रो. द्विवेदी ने यह विचार नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले के दौरान साझा किए।भारत मंडपम के थीम पवेलियन (हाल नंबर-5) में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने ‘राजभाषा हिंदी: अनुप्रयोग के विविध आयाम’ विषय पर व्याख्यान दिया। इस सत्र में प्रख्यात व्यंग्यकार सुभाष चंदर, लेखक और तकनीकी विशेषज्ञ बालेंदु शर्मा दाधीच, और उपन्यासकार अलका सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन ललित लालित्य ने किया, जबकि एनबीटी के मुख्य संपादक कुमार विक्रम ने अतिथियों का स्वागत किया।प्रो. द्विवेदी ने अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वैश्विक स्तर पर हिंदी को नई पहचान दिलाने और गृह मंत्री अमित शाह के राजभाषा क्रियान्वयन के प्रति दृढ़ संकल्प की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह समय भारतीय भाषाओं के लिए अमृतकाल है और हमें इस अवसर का पूरा लाभ उठाकर भाषाई न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।उन्होंने यह भी कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता ने भारतीय भाषाओं और मानसिकता को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे मुक्ति पाने के लिए सरकार और समाज को मिलकर सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है। भारत बहुभाषी संस्कृति का प्रतीक है, इसलिए सभी भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने वाला माहौल बनाना अनिवार्य है। कार्यक्रम में साहित्यकार रिंकल शर्मा, पत्रकार मुकेश तिवारी (इंदौर), और अर्पण जैन भी उपस्थित रहे।
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