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यमुनानगर : चुनाव में बागियों का भी होगा इम्तिहान

यमुनानगर : चुनाव प्रचार थम चुका है। पांच अक्तूबर को विभिन्न राजनीतिक पार्टियों व निर्दलीय प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला ईवीएम में बंद हो जाएगा। यह विधानसभा चुनाव न केवल प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेगा बल्कि टिकट वितरण के वक्त बगावत करने वाले बागी नेताओं का भी राजनीतिक भविष्य तय करेगा।
इस चुनाव से यह भी पता चल जाएगा कि बागियों में किसी प्रत्याशी को जिताने का कितना दमखम है। सबसे ज्यादा देखने वाली बात यह होगी कि बागी नेताओं के अपने बूथ, गांव व विधानसभा से उस प्रत्याशी को कितने वोट पड़े जिनका वह चुनाव में समर्थन कर रहे हैं। अब सभी की निगाहें बागी नेताओं के प्रदर्शन पर ही टिकी हैं।विधानसभा चुनाव के लिए जब टिकट वितरण हुआ था तो जिले में नाराज होकर बागी होने वाले नेताओं की बाढ़ सी आ गई थी। भाजपा, कांग्रेस, बसपा से लेकर कई पार्टियों के नेताओं में बगावत हुई। इनमें सबसे पहला नाम पूर्व राज्य मंत्री कर्णदेव कांबोज का है। रादौर से पूर्व विधायक श्याम सिंह राणा को टिकट दिए जाने पर कर्णदेव नाराज हो गए थे।
अपने समर्थकों की बैठक बुलाई। खुद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी उन्हें मनाने के लिए घर पर पहुंचे, लेकिन वह नहीं माने। कुछ दिन बाद कर्णदेव कांबोज पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपना नेता मानते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए। वहीं यमुनानगर विधानसभा सीट से दो बार से विधायक घनश्याम दास अरोड़ा को टिकट देने पर भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य देवेंद्र चावला भी भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए।
साढौरा विधानसभा से भाजपा ने एक बार फिर से तीन बार विधायक रह चुके बलवंत सिंह को मैदान में उतारा। जब बलवंत सिंह को टिकट मिला तो दाता राम ने मोर्चा खोलते हुए बगावत कर दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। वहीं साढौरा से ही एक बार फिर मौजूदा विधायक रेनू बाला को टिकट दिए जाने पर कांग्रेस नेता बृजपाल छप्पर ने बगावत कर दी। वह पूर्व सीएम हुड्डा के समर्थक थे। रेनू बाला को टिकट मिलने के बाद बृजपाल ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया और रातों रात हाथी पर सवार हो गए।
अब खुद साढौरा से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। न केवल चुनाव लड़ रहे हैं बल्कि भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी को कड़ी टक्कर भी दे रहे हैं। उधर, बृजपाल छप्पर को टिकट देने से बसपा जिला प्रभारी राजेश कटारिया भी भागी हो गए। राजेश कटारिया खुद चुनाव लड़ना चाहते थे। टिकट नहीं मिला तो हुड्डा के नेतृत्व में एक बार फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए।इसके अलावा भी कई नेता बागी हुए जिनके प्रदर्शन पर सबकी नजर लगी हुई है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि बागी नेता दिल से प्रत्याशियों का साथ दे रहे हैं या फिर वह अपने लिए भविष्य के दरवाजे खोल रहे हैं। वजह चाहे कुछ भी हो इस चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर ही बागी नेताओं चुनाव जीतने वाली पार्टी में अच्छा पद मिलेगा।

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