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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा दिवस पर भारत को असली स्वतंत्रता प्राप्त हुई।”

मध्य प्रदेश : इंदौर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि को ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाया जाना चाहिए, क्योंकि इस दिन भारत की “सच्ची आज़ादी” की स्थापना हुई थी, जो शत्रु आक्रमणों से जूझने के बाद प्राप्त हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। हालांकि, हिंदू पंचांग के अनुसार, यह समारोह 11 जनवरी, 2025 को एक साल पूरा करेगा।भागवत ने इंदौर में आयोजित समारोह में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चम्पत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान करते हुए कहा कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाई जानी चाहिए, क्योंकि इस दिन भारत की वास्तविक स्वतंत्रता की नींव रखी गई थी, जो सदियों तक शत्रु आक्रमणों से मुक्त होने के बाद आई।उन्होंने बताया कि 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से ‘राजनीतिक स्वतंत्रता’ मिली, लेकिन संविधान में जो मार्गदर्शन था, वह उस समय पूरी तरह से लागू नहीं हो सका। भागवत ने कहा कि भगवान राम, कृष्ण और शिव के आदर्श भारत के ‘स्व’ का हिस्सा हैं, और यह बात सही नहीं है कि यह केवल उन्हीं का आस्थागत क्षेत्र है जो उनकी पूजा करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आक्रांताओं ने मंदिरों को नष्ट किया ताकि भारत का ‘स्व’ समाप्त हो जाए।संघ प्रमुख ने यह स्पष्ट किया कि राम मंदिर आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष के विरोध या विवाद के लिए नहीं था, बल्कि यह आंदोलन भारत के ‘स्व’ को जागृत करने के लिए था, ताकि देश अपनी पहचान को पुनः स्थापित कर सके। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन इसलिए लंबा चला क्योंकि कुछ शक्तियां नहीं चाहती थीं कि अयोध्या में राम मंदिर बने।भागवत ने बताया कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान देश में कोई विवाद नहीं हुआ और लोग पवित्र मन से उस क्षण के गवाह बने। उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से की अपनी मुलाकात का उल्लेख करते हुए कहा कि मुखर्जी ने कहा था कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष संविधान है और भारतीय परंपरा ने हमें धर्मनिरपेक्षता सिखाई है।चम्पत राय ने इस पुरस्कार को राम मंदिर आंदोलन के सभी ज्ञात और अज्ञात योगदानकर्ताओं को समर्पित किया, जिनके प्रयासों से अयोध्या में यह मंदिर बना। उन्होंने इसे ‘हिंदुस्तान की मूंछ’ (राष्ट्रीय गौरव) का प्रतीक बताया।राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार इंदौर की ‘श्री अहिल्योत्सव समिति’ द्वारा हर साल प्रदान किया जाता है, और इसकी अध्यक्षता लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन करती हैं। महाजन ने पुरस्कार समारोह में घोषणा की कि इंदौर में देवी अहिल्याबाई का भव्य स्मारक बनाया जाएगा, ताकि लोग उनके जीवन और कार्यों से परिचित हो सकें।

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