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महाराष्ट्र की राजनीति में RSS ने अपनी सक्रियता बढ़ाई, विदर्भ की 62 सीटों पर इस विशेष रणनीति से कर रहा प्रभावी काम।

महाराष्ट्र : राजनीति में विदर्भ क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है। नागपुर और इसके आसपास का इलाका विदर्भ के तहत आता है, जहां राज्य की कुल 288 विधानसभा सीटों में से 62 सीटें मौजूद हैं। इस क्षेत्र में पकड़ मजबूत किए बिना महाराष्ट्र की सत्ता तक पहुंच पाना किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनौतीपूर्ण है। यही कारण है कि विदर्भ ने जब भाजपा का समर्थन किया, तो पार्टी को राज्य की सत्ता में आने का अवसर मिला।2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में विदर्भ ने भाजपा को बड़ी जीत दिलाई थी। हालांकि, 2024 के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन इस क्षेत्र में कमजोर रहा, जिससे उसके कुल आंकड़ों पर नकारात्मक असर पड़ा। अब आरएसएस ने विदर्भ में भाजपा की स्थिति को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली है। कहा जा रहा है कि आरएसएस का लक्ष्य है कि इस क्षेत्र की 62 में से कम से कम 35 सीटें भाजपा के खाते में आएं।यह क्षेत्र भाजपा के नितिन गडकरी, देवेंद्र फडणवीस और चंद्रशेखर बावनकुले जैसे दिग्गज नेताओं का गढ़ है, जबकि कांग्रेस के नाना पटोले और विजय वडेट्टीवार जैसे नेता भी यहीं से आते हैं। विदर्भ के सामने कई चुनौतियां हैं। किसानों के मुद्दे लंबे समय से यहां चर्चा में रहे हैं। हालांकि इस बार किसानों की आत्महत्या जैसे गंभीर मुद्दे शीर्ष पर नहीं हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अब भी कृषि संकट और बुनियादी समस्याएं बनी हुई हैं।पिछले कुछ सालों में नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस ने इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर बड़े काम किए हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याएं अब भी बरकरार हैं। सिंचाई और पीने के पानी की कमी भी इस क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों में से एक है। भाजपा इन अधूरी मांगों को पूरा करने के वादे के साथ यहां अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रही है।अलग विदर्भ राज्य का आंदोलन, जो कभी जोरों पर था, अब ठंडा पड़ चुका है। हालांकि, इस मुद्दे के समर्थक कभी-कभार अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, लेकिन इसका कोई खास असर अब दिखता नहीं। हाल ही में नागपुर के धरमपेठ इलाके में आरएसएस ने “कुटुंब शाखा” नामक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। यह एक नई रणनीति है जिसमें कार्यकर्ता और उनके परिवार सामूहिक रूप से मिलते हैं।आरएसएस की कार्यशैली में यह विशेषता है कि वे सीधे तौर पर लोगों से भाजपा को वोट देने के लिए नहीं कहते। वे सकारात्मक माहौल और भरोसा बनाते हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से उनका संदेश स्पष्ट हो जाता है। इस रणनीति के जरिए वे विदर्भ में भाजपा को फिर से मजबूत स्थिति में लाने का प्रयास कर रहे हैं।

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