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यमुनानगर : प्लाईवुड और मेटल उद्योग पर संकट के बादल, बढ़ती लागत से घटी बाजार की मांग

यमुनानगर : में स्थित लगभग 400 के करीब प्लाईवुड और 1000 से अधिक छोटी-बड़ी मेटल उद्योग इस समय गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। वर्तमान में, लगभग 125 प्लाईवुड इकाइयाँ बंद हो चुकी हैं, और कई उद्यमियों ने घाटे के कारण अपने उद्योग उत्तर प्रदेश या कर्नाटक में स्थानांतरित कर दिए हैं। इससे इन उद्योगों की स्थिति और खराब होती जा रही है।यहाँ प्लाईवुड निर्माण में मुख्य रूप से पॉपलर और सफेदा लकड़ी का उपयोग होता है। पांच वर्ष पहले पॉपलर लकड़ी की कीमत 800 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो अब बढ़कर 1400 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। इसी प्रकार, सफेदा लकड़ी की कीमत भी 600 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 1050 रुपये प्रति क्विंटल हो चुकी है। इसके अतिरिक्त, एक वर्ष से नेपाल से प्लाईवुड का आयात होने के कारण उद्योगों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। मांग में कमी के कारण उत्पादन घटकर मात्र 40% रह गया है।हरियाणा प्लाईवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जे.के. बिहानी के अनुसार, लकड़ी की एक ट्रॉली, जो पहले 80-90 हजार रुपये में मिलती थी, अब ढाई से तीन लाख रुपये तक पहुँच गई है। राज्य में प्लाईवुड उद्योग का वार्षिक टर्नओवर लगभग 2000 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 1400 करोड़ रुपये का योगदान यमुनानगर से आता है। हालांकि, नेपाल और केरल के प्लाईवुड की बढ़ती मांग के कारण जिले का निर्यात घटकर एक तिहाई रह गया है।जगाधरी में बनने वाले बर्तन न केवल भारत में बल्कि अमेरिका, सऊदी अरब, दुबई, ईरान, कुवैत, तंजानिया, काबुल, जर्मनी, स्पेन जैसे देशों में भी निर्यात किए जाते हैं। लेकिन मंदी के कारण इस क्षेत्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। द मेटल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के महासचिव सुंदर लाल बतरा का कहना है कि मेटल उद्योग पर 12% बिक्री कर और 18% कच्चे माल पर जीएसटी की दर का प्रभाव पड़ रहा है। उनका मानना है कि जीएसटी दरों में कमी लाने से इस उद्योग को राहत मिल सकती है। जगाधरी की मेटल नगरी में हर घर में बर्तन निर्माण का कार्य होता है और यह क्षेत्र सरकार के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत है। यदि सरकार इस राजस्व का कुछ हिस्सा क्षेत्र के विकास पर खर्च करे, तो उद्योगों और जिले की स्थिति में सुधार आ सकता है।

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