यमुनानगर : नगर निगम द्वारा शहर की सफाई पर हर माह लगभग 1.80 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद कचरे की समस्या बनी हुई है। निगम क्षेत्र के गांवों, कॉलोनियों और पॉश इलाकों की सड़कों के किनारे कचरा बिखरा दिखाई देता है। खाली प्लॉट और खुले स्थान कचरा डंपिंग स्थल बन गए हैं, जिससे बारिश के दौरान जल निकासी व्यवस्था प्रभावित हो रही है।इसके अतिरिक्त, कचरे से उठने वाली दुर्गंध और मक्खी-मच्छरों की बढ़ती संख्या लोगों की सेहत पर बुरा असर डाल रही है। खुले में पड़े कचरे के कारण शहर की स्वच्छ सर्वेक्षण-2024 में रैंकिंग प्रभावित होने की आशंका भी जताई जा रही है। वर्ष 2023 में डोर-टू-डोर कचरा उठाने और निस्तारण का काम दो जोन में बांटकर दो एजेंसियों को सौंपा गया था, जिसका ठेका लगभग 26 करोड़ रुपये में हुआ।साल 2024 में इसे एक ही जोन में बदलकर यह ठेका 19 करोड़ रुपये में एक एजेंसी को दिया गया। इस प्रकार, डोर-टू-डोर कचरा उठाने और निस्तारण पर हर महीने लगभग 1.58 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। मुख्य मार्गों की सफाई के लिए स्वीपिंग मशीनों पर हर महीने लगभग चार लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके अलावा नगर निगम के लगभग 700 कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और अन्य संसाधनों पर लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं।हालांकि, इतने बड़े खर्च के बावजूद वर्ष 2023 में शहर की स्वच्छता रैंकिंग 51 पायदान गिरकर 170 से 221 पर पहुंच गई। निवर्तमान पार्षदों का कहना है कि सफाई व्यवस्था पर उचित निगरानी न होने के कारण यह स्थिति बनी है। पार्षद रामआसरा भारद्वाज, विनोद मरवाह और निर्मल चौहान ने बताया कि ठेके पर सफाई कार्य कराने के लिए नियमों का पालन ई-निविदा में शामिल होता है, लेकिन धरातल पर इन नियमों का पालन नहीं हो रहा।डोर-टू-डोर कचरा उठाने का काम नियमित नहीं है। कई कॉलोनियों और गांवों में कचरा वाहन कई दिनों के अंतराल पर आते हैं, जिससे लोग घरों में जमा कचरे को आसपास खाली स्थानों पर फेंकने को मजबूर हो जाते हैं। कचरे को ढककर ले जाने और अलग-अलग प्रकार के कचरे को अलग से उठाने की व्यवस्था भी अभी तक लागू नहीं हो पाई है। इन खामियों के चलते शहर की स्वच्छता रैंकिंग में गिरावट आ सकती है।