जम्मू और कश्मीर संबंधी दो विधेयकों को लेकर मोदी सरकार के विरोध में उतरे अधिकतर कश्मीरी नेता

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने पुलवामा में पत्रकारों से कहा, विधेयक पर हमारी आपत्तियां दो मुद्दों पर हैं।

जम्मू और कश्मीर संबंधी दो विधेयकों को लेकर मोदी सरकार के विरोध में उतरे अधिकतर कश्मीरी नेता

जम्मू-कश्मीर  : लोकसभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 पारित किये जाने के बाद स्थानीय राजनीतिक दलों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। भाजपा को छोड़ कर अधिकतर दलों का यही कहना है कि उपराज्यपाल को मनोनयन का अधिकार देने की बजाय निर्वाचित सरकार को यह अधिकार देना चाहिए। इस बीच, उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 370 मुद्दे पर मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाला है।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है और अभी इस पर फैसला लंबित है, इसलिए केंद्र सरकार को इस कानून में संशोधन नहीं करना चाहिए। हम आपको बता दें कि यह विधेयक कश्मीरी प्रवासी समुदाय के दो सदस्यों और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के विस्थापित लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक व्यक्ति को विधानसभा में मनोनीत करने का प्रावधान करता है।

 

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने पुलवामा में पत्रकारों से कहा, “विधेयक पर हमारी आपत्तियां दो मुद्दों पर हैं। पहला यह कि उच्चतम न्यायालय ने (राज्य के) पुनर्गठन पर अपना फैसला नहीं सुनाया है और वे (सरकार इसमें) बदलाव पर बदलाव ला रहे हैं।” उन्होंने कहा कि पार्टी की दूसरी आपत्ति विधानसभा सीटों को मनोनयन के जरिये भरने को लेकर है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “इसे चुनी हुई सरकार पर छोड़ देना चाहिए। यह विधेयक उपराज्यपाल को मनोनयन का अधिकार देता है। इससे स्पष्ट रूप से संदेह पैदा होता है कि यह भाजपा की मदद करने के लिए किया जा रहा है क्योंकि भाजपा चुनाव नहीं जीत सकती है और इसलिए, वे अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रही है।” हालांकि अब्दुल्ला ने कहा कि जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे तो उसके बाद चुनी हुई सरकार बदलावों को रद्द कर सकती है।

 

संशोधन विधेयक पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के अदालत का दरवाजा खटखटाने पर विचार करने के बारे में अब्दुल्ला ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले ही जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को शीर्ष अदालत में चुनौती दे चुकी है। उन्होंने कहा, ''जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का पूरा मामला अदालत में है। अब अदालत जाना पीडीपी की शायद मजबूरी है, क्योंकि जब हमने पांच अगस्त 2019 (के फैसले) के खिलाफ शीर्ष अदालत में मामला दायर किया था, तब उन्होंने (पीडीपी ने) उच्चतम न्यायालय का रुख नहीं किया था, तब पीडीपी चुप थी।” अब्दुल्ला ने कहा, “फिलहाल हमें अदालत जाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि हमारा मामला पहले से ही अदालत में है।”

दूसरी ओर, भाजपा ने कहा है कि वह इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करती है क्योंकि इससे कश्मीरी पंडितों को प्रतिनिधित्व मिलेगा। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि मोदी सरकार किसी के भी लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन नहीं करेगी।

 

वहीं पीडीपी प्रवक्ता ने कहा कि यह विधेयक एक मजाक है। प्रभासाक्षी संवाददाता से बातचीत में उन्होंने कहा कि साल 2019 से पहले हर बार कश्मीरी पंडितों को चुनाव में प्रतिनिधित्व के लिए नामांकन दिया जाता था।

 

वहीं जेकेपीसी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडित हमारे राज्य का अभिन्न अंग हैं, उन्हें अपने समुदाय का प्रतिनिधित्व करना चाहिए, हालांकि केंद्र सरकार को एलजी प्रशासन को नहीं बल्कि कश्मीरी पंडितों को अपना उम्मीदवार चुनने के लिए कहना चाहिए।

 

वहीं जेकेएपी ने कहा कि निर्णय राज्य विधान सभा को करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैसा कि हम सभी जानते हैं, केंद्र की मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों की स्थिति में कोई सुधार नहीं किया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की कश्मीर नीति गलत रही है।

हम आपको बता दें कि जहां तक इन दोनों विधेयकों की बात है तो इनके बारे में माना जा रहा है कि यह केंद्र सरकार द्वारा क्षेत्र के कश्मीरी पंडितों और पहाड़िया समुदाय को लुभाकर 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक परिदृश्य को अपने फायदे के लिए बदलने का प्रयास है।

हम आपको यह भी बता दें कि उच्चतम न्यायालय जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएगा। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई 11 दिसंबर, सोमवार की सूची के अनुसार, प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत हैं। शीर्ष अदालत ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद पांच सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करने वालों और केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य की दलीलों को सुना था। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।