कांग्रेस से दूरी, क्षेत्रीय दलों के लिए है मजबूरी

राहुल गांधी को स्वीकार करने को क्यों नहीं तैयार

कांग्रेस से दूरी, क्षेत्रीय दलों के लिए है मजबूरी

नई दिल्ली- 2024 के लोकसभा चुनाव में अब एक साल का वक्त बचा हुआ है। चुनाव को पास आते देख राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। 2024 का चुनाव काफी दिलचस्प भी माना जा रहा है। बड़ा सवाल यही है कि विपक्ष का प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा? साथ ही साथ सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष एकजुट हो पाएगा क्योंकि लगातार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े विपक्षी एकजुटता के बाद करते रहे हैं। वह समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ आने की अपील भी कर चुके हैं। लेकिन हाल में ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के बीच एक बड़ी बैठक हुई। इस बैठक के बाद जो सबसे बड़ा संदेश निकल कर सामने आया वह यह था कि कांग्रेस के बिना तीसरे मोर्चे की गठन को लेकर दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई है। इसके बाद ममता बनर्जी कुछ अन्य नेताओं से भी मुलाकात करेंगी।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी बनाकर क्यों रखना चाहते हैं? सवाल यह भी है कि वह राहुल गांधी को नेता के तौर स्वीकार क्यों नहीं कर पा रहे हैं? भारत जोड़ो यात्रा के बाद कई दलों ने राहुल गांधी और कांग्रेस से लगातार दूरी बना रखी है। उसमें ममता बनर्जी के अलावा टीडीपी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजेडी जैसे दल शामिल हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि टीएमसी ने हाल में ही कह दिया था कि कांग्रेस को बिग बॉस वाली नीति छोडऩी होगी। टीएमसी की ओर से संसद में जारी गतिरोध पर साफ तौर पर कहा गया था कि कांग्रेस अपनी नीति पर काम कर रही है और हम अपनी नीति पर। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने यह भी कहा था कि भाजपा राहुल गांधी को विपक्ष नेता बनाने पर तुली हुई है ताकि आगामी चुनाव में उसे फायदा हो सके।  दिलचस्प बात यह भी है कि जब कांग्रेस ने 15 मार्च को हटाने में मुद्दे को लेकर संसद से प्रवर्तन निदेशालय तक 1 मार्च निकालने की कोशिश की तो तृणमूल कांग्रेस ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। हालांकि, लगातार कांग्रेस के साथ खड़े रहने का दावा करने वाले शरद पवार की पार्टी एनसीपी का भी कोई सांसद इसमें नहीं दिखा। हाल में पश्चिम बंगाल में जो उपचुनाव के नतीजे आए, उसके बाद ममता बनर्जी ने भाजपा कांग्रेस और वामदलों पर गठबंधन करने का आरोप लगा दिया। खबर है कि ममता कई विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक करने के लिए इस महीने के आखिर में या अप्रैल के शुरुआत में दिल्ली भी आ रही हैं। खबर तो यह भी है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 18 मार्च को 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए रात्रि भोज की योजना बनाई थी। हालांकि इसे रद्द कर दिया गया।

बताया जा रहा है कि जिन मुख्यमंत्रियों को केजरीवाल ने अपने रात्रि भोजन के लिए आमंत्रित किया था उनमें से कुछ ने 2024 में कांग्रेस के खिलाफ खुद को जाते हुए दिखाना सही नहीं समझा। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा इसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के पी विजयन, तमिलनाडु के एमके स्टालिन, झारखंड के हेमंत सोरेन और तेलंगाना के केसीआर शामिल थे। हालांकि, इन तमाम नेताओं की बात करें तो इनमें से दो ऐसे हैं जो लगातार कांग्रेस पर हमलावर रहते हैं। वे हैं ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल। यह दोनों राहुल गांधी को गंभीर राजनेता भी नहीं मानते और जमकर निशाना साधते रहते हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि राहुल गांधी लगातार आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ दिल्ली से पंजाब और बंगाल से मेघालय तक आवाज बुलंद किए हुए हैं। पिछले दिनों में देखा कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पार्टी को छोडक़र टीएमसी में जाना सही समझा। यह कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था। 2021 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में जीत के बाद ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। इसके बाद भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा की उम्मीद जगी थी। हालांकि, धीरे-धीरे दोनों दलों की दूरी लगातार बढ़ती गई। एक धारणा लगातार बनी हुई है। वह राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी की है। लेकिन कई विपक्षी दल इसे सही नहीं मानते।

2019 के बाद राहुल गांधी की स्थिति कमजोर हुई है। 2019 में राहुल गांधी ने एकतरफा प्रचार अभियान चलाया। बावजूद इसके वह अपनी परंपरागत सीट भी अमेठी में नहीं बचा सके। इसके बाद राहुल गांधी की क्षेत्रीय दलों में भी स्थिति कमजोर हुई। कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर क्षेत्रीय दलों में एक भ्रम यह भी है कि जहां भाजपा का मुकाबला सीधे कांग्रेस जो होता है वहां भगवा पार्टी बाजी मार जाती है। क्षेत्रीय दल भाजपा को चुनौती देने में सक्षम रहते हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के वर्चस्व को कम कर के खुद के लिए जगह बनाई है। अगर वर्तमान स्थिति में वे कांग्रेस के साथ खड़े होते हैं तो कहीं ना कहीं देश के सबसे पुरानी पार्टी के लिए यह संजीवनी का काम करेगा। कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है और वह एक जगह भी मजबूत होती है तो उसका असर पूरे देश पर पड़ेगा। ऐसे में कहीं ना कहीं क्षेत्रीय दलों के लिए एक संकट खड़ा हो सकता है।