पीएम मोदी का मिस्त्र दौरा कितना अहम

जानें इससे भारत को क्या मिलेगा?

पीएम मोदी का मिस्त्र दौरा कितना अहम

वाशिंगटन : भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज छह दिन की आधिकारिक विदेश यात्रा पर रवाना हो चुके हैं। 25 जून तक इस दौरे के दौरान वो तीन दिन अमेरिका में रहेंगे जबकि वहां से लौटते हुए दो दिन मिस्र में रहेंगे। विदेश मंत्रालय के अनुसार, पीएम मोदी मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सीसी के बुलावे पर काहिरा जाएंगे। यहां वह मिस्त्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सीसी से मुलाकात करेंगे।  हाल ही में श्रीनगर में जी-20 के वर्किंग ग्रुप की बैठक हुई थी। इसमें पाकिस्तान के कहने पर चीन, तुर्की और सऊदी अरब के साथ-साथ मिस्र ने भी हिस्सा नहीं लिया था। ऐसे में पीएम मोदी का मिस्त्र दौरा काफी अहम हो गया है। सवाल उठ रहा है कि आखिर पीएम मोदी मिस्त्र के दौरे पर क्यों जा रहे हैं? इसका भारत को कूटनीतिक तौर पर क्या फायदा मिलेगा?

भारत ने इस साल मिस्त्र के राष्ट्रपति अल सीसी को गणतंत्र दिवस परेड के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया था। ये उनका तीसरा भारत दौरा था। इससे पहले वो भारत-अफ्रीका सम्मेलन के लिए अक्तूबर 2015 में और द्विपक्षीय यात्रा पर 2016 में भारत आए थे। तब दोनों नेताओं के बीच साझा हित से जुड़े द्विपक्षीय मामलों पर चर्चा हुई थी। हालांकि, भारत को तब झटका लगा जब हाल ही में जी-20 की श्रीनगर में आयोजित बैठक मिस्त्र के प्रतिनिधि ने शिरकत नहीं की। कहा जाता है कि पाकिस्तान के कहने पर मिस्त्र इस बैठक में शामिल नहीं हुआ। 

तो पीएम मोदी क्यों जा रहे मिस्त्र? 

इसे समझने के लिए हमने विदेश मामलों के जानकार डॉ. आदित्य पटेल से बात की। उन्होंने कहा, ‘मिस्र की स्थिति रणनीतिक तौर पर अहम है। 1955 में भारत और मिस्र ने मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किया था। वर्ष 1961 में भारत और मिस्र ने यूगोस्लाविया, इंडोनेशिया एवं घाना के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की। ऐसे में पीएम मोदी का ये दौरा कूटनीतिक तौर पर जरूरी है। मिस्त्र के साथ मुक्त व्यापार समझौतों से भारत के लिए पश्चिम एशिया और अफ्रीका के दरवाजे खुल जाएंगे।’

उन्होंने आगे कहा, ‘मिस्त्र ने भले ही हाल ही में श्रीनगर में आयोजित जी-20 की बैठक में शिरकत नहीं की, लेकिन ऐसा नहीं है कि वह हमेशा पाकिस्तान के कहने पर चलता है। इस्लामिक देशों के संगठन में कई बार ऐसा हुआ है जब मिस्त्र ने पाकिस्तान की नीतियों का समर्थन नहीं किया। ऐसे में मोदी के मिस्त्र जाने से दोनों देशों को फायदा होगा।’

डॉ. पटेल ने बताया कि 2022 में जब मोहम्मद पैगम्बर को लेकर भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने टिप्पणी की तो कई इस्लामिक देशों ने नाराजगी जाहिर की थी। हालांकि, मिस्र ने इस दौरान कोई भी टिप्पणी नहीं की। इस मुद्दे को लेकर पाकिस्तान ओआईसी में एक प्रस्ताव भी लेकर आया लेकिन अल-सीसी ने इसका समर्थन नहीं किया जिस कारण ये प्रस्ताव पास नहीं हो सका। 

कैसे हैं दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते?

डॉ. आदित्य कहते हैं, ‘अभी दोनों देशों के बीच करीब सात अरब डॉलर का व्यापार है। इसी साल जब जनवरी में अल सीसी भारत आए थे, तब दोनों देशों ने सात अरब डॉलर के व्यापार को बढ़ाकर 12 अरब डॉलर तक करने के लिए समझौता किया था। यही नहीं, पहली बार साझा सैन्य अभ्यास भी किया। मिस्त्र ने भारत से तेजस लड़ाकू विमान, रडार, सैन्य हेलिकॉप्टर और आकाश मिसाइल सिस्टम खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। मतलब अब तक दूसरों से रक्षा उत्पाद खरीदने वाला भारत दूसरों को ये उत्पाद निर्यात करेगा। अभी 42 देश ऐसे हैं, जो भारत से रक्षा उत्पाद खरीदते हैं। दोनों देश डॉलर के अलावा दूसरी मुद्रा में भी व्यापार करने के लिए बातचीत कर रहे हैं।’

डॉ. आदित्य के अनुसार, ‘मिस्त्र को भी भारत की काफी जरूरत है। मिस्र को शिक्षा, आईटी, रक्षा आदि क्षेत्रों में भारत की जरूरत है। भारत के लिए मिस्र अफ्रीका में निवेश का रास्ता बन सकता है क्योंकि मिस्र पश्चिम एशिया और अफ्रीका की राजनीति में बहुत मजबूत है।’ उन्होंने कहा, ‘मिस्र लंबे समय से विदेशी मुद्री की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में उसे भारत के मदद की जरूरत है। संभव है कि पीएम मोदी अपने दौरे का दौरान इसकी घोषणा कर दें।