निजी विद्यालयों के लिए अलग और सरकारी विद्यालयों के लिए अलग मान्यता की शर्तें पूरी तरह से असंवैधानिक : पासवा

देश में 2005 शिक्षा का अधिकार कानून लागू है तो फिर झारखण्ड में अलग नियम कानून कहां तक न्याय संगत होगा

निजी विद्यालयों के लिए अलग और सरकारी विद्यालयों के लिए अलग मान्यता की शर्तें पूरी तरह से असंवैधानिक : पासवा

रांची : झारखंड में प्राइवेट स्कूल्स एण्ड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन (पासवा) के प्रदेश अध्यक्ष आलोक दूबे ने कहा कि एक राज्य में निजी विद्यालयों के लिए अलग मान्यता प्राप्त करने की शर्त और सरकारी विद्यालयों के लिए अलग मान्यता की शर्तें यह पूरी तरह से असंवैधानिक एवं पीडक़ कार्रवाई है। प्रदेश पासवा अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे ने आज पासवा कार्यालय में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि पूरे देश में 2005 शिक्षा का अधिकार कानून लागू है तो फिर झारखण्ड में अलग नियम कानून कहां तक न्याय संगत होगा। उन्होंने कहा पिछली रघुवर दास की भाजपा सरकार ने 2019 में मान्यता प्राप्त करने के लिए संशोधन कर छोटे-छोटे निजी विद्यालयों को बंद करने की साजिश रची थी, जिसे लेकर पासवा मुख्यमंत्री तत्कालीन शिक्षा मंत्री एवं वित्त मंत्री से बात किया था।

श्री दूबे ने कहा कि मुख्यमंत्री की पहल पर निजी विद्यालयों को पिछले 2 वर्ष से आठवीं बोर्ड की परीक्षा में निजी विद्यालयों के बच्चों को सम्मिलित होने का आदेश भी दिया गया था। यहां तक कि तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्वर्गीय जगन्नाथ महतो ने पासवा के साथ बैठक में एवं सभी जिलों में रघुवर दास सरकार द्वारा 2019 आरटीई कानून को निरस्त करने की बात कही थी और ऐसा ही भरोसा घोषणापत्र में भी गठबंधन दलों ने दिया था।

श्री दूबे ने कहा कि भाजपा के 2019 आरटीई कानून निरस्त करने को लेकर माननीय न्यायालय में याचिका दायर है जिसपर बहस जारी है। 10 मई 2023 को पासवा के प्रतिनिधिमंडल ने वर्तमान शिक्षा सचिव से भी मुलाकात किया था और गैर मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों को मान्यता देने का अनुरोध किया था, शिक्षा सचिव ने मौखिक रूप से कहा था कि मान्यता के लिए जमीन का रकबा कम किया जाएगा एवं स्कूल संचालन के लिए सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट पर भी विचार किया जाएगा, लेकिन शिक्षा सचिव ने 25 मई को दुबारा से 2019 के रघुवर दास के कठिन शर्तों वाली मान्यता का आदेश जारी कर एक प्रकार से निजी विद्यालयों को बंद करने की साजिश की है।

पासवा मुख्यमंत्री से अनुरोध करती है कि शिक्षा विभाग के 24 मई के आदेश को तत्काल रोका जाए वरना राज्य के लाखों गैर मान्यता प्राप्त स्कूल में पढऩे वाले बच्चों का भविष्य अधर में लटक जाएगा। उत्कृष्ट विद्यालय खोलने का प्रयास की हम सराहना करते हैं लेकिन यह कौन सा फरमान है कि निजी विद्यालयों के मान्यता के लिए ऐसी शर्त रखी गई है जो पूरी तरह से गैर वाजिब है।तीस हजार से अधिक गैरमान्यता प्राप्त विद्यालय हैं जो इस राज्य का लाइफ लाइन है।हजारों लोगों के रोजगार भी इससे जुड़े हुए हैं।ऐसा लगता है कि रघुवर दास के प्रभाव में शिक्षा विभाग काम कर रहा है।

प्रदेश पासवा उपाध्यक्ष लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा शिक्षा विभाग का अध्यादेश शिक्षा को समूल नष्ट करने का उद्देश्य लगता है। सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है, सीधे तौर पर झारखंड के आदिवासी गरीबों पर कुठाराघात है।सरकार को अगर संज्ञान होगा तो जनविरोधी फैसले पर पुनर्विचार भी होगा।मुख्यमंत्री से आग्रह है कि इसकी गंभीरता को संज्ञान में लें और और शिक्षा विभाग पर कार्रवाई करें क्योंकि विभाग के जो ऐसे फैसले होते हैं सरकार को मुसीबत में डालने वाले हैं।