जिंदगी के हर फलसफे पर गीत लिखने में माहिर थे शैलेन्द्र

पश्चिमी पंजाब के रावलपिन्डी शहर अब पाकिस्तान में 30 अगस्त 1923 को जन्में शंकर दास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र

जिंदगी के हर फलसफे पर गीत लिखने में माहिर थे शैलेन्द्र

मुंबई : जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वंय को ऐसे समाहित सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो ।


पश्चिमी पंजाब के रावलपिन्डी शहर अब पाकिस्तान में 30 अगस्त 1923 को जन्में शंकर दास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र अपने भाइयों मे सबसे बड़े थे। उनके बचपन में ही उनका परिवार रावलपिंडी छोड़कर मथुरा चला आया। जहां उनकी माता पार्वती देवी की मौत से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और उनका ईश्वर पर से सदा के लिये विश्वास उठ गया।अपने परिवार की घिसीपिटी परंपरा को निभाते हुये शैलेन्द्र ने वर्ष 1947 में अपने कैरियर की शुरूआत मुंबई में रेलवे में नौकरी से की।उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा।

इस समय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था।रेलवे की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी। ऑफिस में अपने काम के समय भी वह अपना ज्यादातर समय कविता लिखने मे हीं बिताया करते थे जिसके कारण उनके अधिकारी उनसे नाराज रहते थे।


इस बीच शैलेन्द्र देश की आजादी की लड़ाई से जुड़ गये और अपनी कविता के जरिये वह लोगों मे जागृति पैदा करने लगे। उन दिनों उनकी कविता जलता है पंजाब काफी सुर्खियों मे आ गयी थी। शैलेन्द्र कई समारोह में यह कविता सुनाया करते थे।गीतकार के रूप में शैलेन्द्र ने अपना पहला गीत वर्ष 1949 में प्रदर्शित राजकपूर की फिल्म बरसात के लिये बरसात में तुमसे मिले हम सजन लिखा था।

इसे संयोग हीं कहा जायेगा कि फिल्म बरसात से हीं बतौर संगीतकार शंकर-जयकिशन ने अपने कैरियर की शुरूआत की थी। इसके बाद शैलेन्द्र .राजकपूर के चहेते गीतकार बन गये। शैलेन्द्र और राजकपूर की जोड़ी ने कई फिल्में एक साथ की। इन फिल्मों में आवारा,आह,श्री 420,चोरी चोरी,अनाड़ी,जिस देश में गंगा बहती है, संगम,तीसरी कसम, एराउंड द वर्ल्ड,दीवाना, सपनों का सौदागर और मेरा नाम जोकर जैसी कई फिल्में शामिल है।