मुंगेर से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे मधु लिमये

साठ और सत्तर के दशक में एक ऐेसे राजनेता हुआ करते थे, जो कभी सरकार का हिस्सा नहीं रहे

मुंगेर से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे मधु लिमये

पटना : लोकतांत्रिक समाजवादी आंदोलन के करिश्माई नेता रामचंद्र मधु लिमये (मधु लिमये), जिन्होंने अंग्रेजों की लाठियां भी खाईं और पुर्तगालियों से लोहा भी लिया, तथा बिहार को अपनी सियासी कर्मभूमि बनाया और पहली बार मुंगेर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे लेकिन वह इस सीट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे।

साठ और सत्तर के दशक में एक ऐेसे राजनेता हुआ करते थे, जो कभी सरकार का हिस्सा नहीं रहे। जब सरकार में मंत्री पद की कुर्सी मिल रही थी तो लेने से मना कर दिया। संसद में ऐसी धाक जमाई कि जब वह बोलने के लिए खड़े होते तो सत्ता पक्ष में सिहरन पैदा हो जाती थी। कागज़ों का पुलिंदा बगल में दबाये हुए जब वे संसद में प्रवेश करते तो ट्रेज़री बेंच पर बैठने वालों की सांस रुक जाया करती थी कि न जाने आज किसकी शामत आने वाली है। सबूतों और दस्तावेजों के साथ ऐसा कमाल का भाषण कि इसके चक्कर में कई राजनेताओं की कुर्सी चली गई। जब वह संसद में होते थे तो सत्तापक्ष को डर सताता रहता था कि कब उनपर तीखे सवालों की बौछार हो जाएगी। संसदीय परंपराओं और व्यवस्था का ऐसा ज्ञान कि सत्ता पक्ष के लोगों की तमाम दलीलें धरी की धरी रह जाये। वह थे समाजवादी आंदोलन के नेताओं में से एक शतरंज के चैंपियन मधु लिमये।

स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा, ब्रिटिश, पुर्तगाली, हुकूमत की बर्बरता के खिलाफ लड़कपन से ही जूझने वाले मधु लिमये का जन्म एक मई 1922 को महाराष्ट्र के पुणा में हुआ था। मधु लिमये ने वर्ष 1937 में यहीं के फर्ग्युसन कॉलेज में उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिया, तभी से वह छात्र आंदोलनों में शामिल होने लगे। वर्ष 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध में मधु लिमये देश को आजाद कराने की मुहिम में शामिल हो गये। उन्होंने विश्वयुद्ध के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। वह लोगों के बीच जाकर युद्ध विरोधी भाषण देने लगे, लेकिन अंग्रेजों को यह कहां से बर्दाश्त होता, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद करीब एक साल के लिए मधु को जेल में रखा गया, जहां से वह वर्ष 1941 में रिहा हुये।

मधु लिमये ने गोवा मुक्ति आंदोलन में 1950 के दशक में शिरकत की, जिसे उनके नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने वर्ष 1946 में शुरू किया था। गोवा मुक्ति आंदोलन के दौरान उन्होंने पुर्तगाली कैद में 19 महीने से अधिक समय बिताया। कैद के दौरान उन्होंने जेल डायरी के रूप में एक पुस्तक 'गोवा लिबरेशन मूवमेंट और मधु लिमये’ लिखी, जो वर्ष 1996 में गोवा आंदोलन के शुभारंभ की स्वर्ण जयंती के अवसर पर प्रकाशित हुई। वर्ष 1957 में पुर्तगाली हिरासत से छूटने के बाद भी मधु लिमये ने गोवा की मुक्ति के लिए जनता को जुटाना जारी रखा। उन्होंने भारत सरकार से इस दिशा में ठोस कदम उठाने का आग्रह किया। जन सत्याग्रह के बाद भारत सरकार गोवा में सैन्य कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई और गोवा पुर्तगाली शासन से मुक्त हुआ। 19 दिसंबर 1961 में गोवा आजाद होकर भारत का अभिन्न अंग बना।

महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले मधु लिमये मराठी होने के बावजूद मुंगेर संसदीय सीट से वर्ष 1964 के उपचुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने थे हालांकि वह यहां से चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं थे। वर्ष 1962 में मुंगेर संसदीय सीट से कांग्रेस के बनारसी प्रसाद सिन्हा ने जीत हासिल की थी। बेगूसराय के सोशलिस्ट पार्टी के नेता राजेन्द्र प्रसाद सिंह के प्रयास से श्री लिमये मुंगेर 1964 के उपचुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशी घोषित किए गए थे। कांग्रेसी सांसद बनारसी प्रसाद सिंह के निधन पर 1964 में मुंगेर में हुए उपचुनाव में बेगूसराय के जिला कमेटी के नेता राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने श्री लिमये को मुंबई से बुला कर पार्टी प्रत्याशी बनाना चाहा तो उन्होंने इंकार कर दिया था कि वह बिहार के मुंगेर में अंजान हो कर चुनाव कैसे जीत सकेंगे?

अपनी जीत के प्रति आश्वस्त कांग्रेस ने बिहार की राजनीति में दिग्गज माने जाने वाले स्थानीय नेता को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया था और बिहार के बाहर के किसी नेता के उनके मुकाबले उतरने से ‘बिहारी बनाम बाहरी’ का नारा देकर उन्हें अपनी जीत सुनिश्चित दिखाई देती थी, लेकिन मधु लिमये जैसे समाजवादी के मैदान में आते ही उनके मनमोहक व्यक्तित्व, गंभीर भाषण की कला और लोक संपर्क की अद्भुत शैली के कारण मुंगेर की जनता और खासकर युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी और चुनाव का परिणाम साफ-साफ उनके पक्ष में दिखाई देने लगा। श्री लिमये ने मुगेर से चुनाव लड़ा और कांग्रेसी प्रतिद्वंद्वी शिवनंदन भगत को पराजित कर पहली बार संसद पहुंचे।

वर्ष 1963 में मुंगेर बंगाल के नवाब मीर कासिम की राजधानी थी। मीर कासिम ने राजा जरासंध के बनाये ‘लाला किले’ को जीर्णोद्धार किया था। देश का सबसे पुराना लोको शेड यहां जमालपुर में है। मुंगेर जिला मुख्यालय से करीब दो किलोमीटर पूरब गंगा किनारे पहाड़ी गुफा में अवस्थित शक्ति पीठ मां चंडिका का मंदिर लाखों भक्तों के लिए ‘आस्था‘ का केन्द्र बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की बाईं आंख गिरी थी। यहां आंखों के असाध्य रोग से पीड़ित लोग पूजा करने आते हैं और यहां से काजल लेकर जाते हैं। लोग मानते हैं कि यह काजल नेत्ररोगियों के विकार दूर करता है।मुंगेर में ही सीता कुंड है। बिहार स्कूल ऑफ योगा विश्वप्रसिद्ध है। मौजूदा वक्त नें मुंगेर को योग नगरी की संज्ञा दी जाती है। मुंगेर ज़िले के जमालपुर में एशिया का पहला और हिंदुस्तान का सबसे पुराना रेल कारखाना भी स्थापित है।वर्ष 2008 में परिसीमन के पूर्व मुंगेर जिले में हवेली खड़गपुर विधानसभा क्षेत्र होता था। वर्ष 1951 में खड़गपुर विधानसभा का गठन हुआ था। श्री कृष्ण सिंह खड़गपुर से पहले विधायक बने और बिहार के पहले मुख्यमंत्री भी।

वर्ष 1952 में पहले लोकसभा चुनाव के समय मुंगेर ज़िले में तीन लोकसभा सीट मुंगेर नॉर्थ-वेस्ट, मुंगेर नार्थ ईस्ट, मुंगेर सदर जमुई शामिल थे। मुंगेर नॉर्थ-इस्ट से सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी सुरेश चंद्र मिश्रा, मुंगेर नार्थ वेस्ट से कांग्रेस प्रत्याशी मथुरा प्रसाद मिश्रा, मुंगेर सदर जमुई से बनारसी प्रसाद सिन्हा और नयन तारा दास ने जीत का परचम लहराया था। वर्ष 1976 से मुंगेर जिले का दायरा छोटा होना शुरू हो गया था। वर्ष 1972 मुंगेर ज़िले को बांटकर बेगूसराय अस्तित्व में आया, वहीं 1981 में खगड़िया , 1991 में जमुई और 1994 में मुंगेर ज़िले से बांटकर लखीसराय और शेखपुरा जिला अस्तित्व में आया।

मुंगेर लोकसभा क्षेत्र वर्ष 1957 में अस्तित्व में आया। वर्ष 1957 में मुंगेर में हुये चुनाव में कांग्रेस के बनारसी प्रसाद सिन्हा और नयन तारा दास ने जीत हासिल की।वर्ष 1962 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बनारसी प्रसाद सिन्हा ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रामेश्वर यादव को पराजित किया। बनारसी प्रसाद सिन्हा के निधन के बाद वर्ष 1964 में हुये उपचुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी प्रत्याशी मधु लिमये ने जीत हासिल की। खड़गपुर प्रखण्ड के मथुरा गांव में जन्में बनारसी प्रसाद सिंह मुंगेर में असहयोग आन्दोलन के प्रणेता थे। अगस्त क्रांति 1942 ई. में मुंगेर में लागू निषेधाज्ञा को उन्होंने जुलूस का नेतृत्व करते हुए तोड़ा। उन्हें गिरफ्तार करके भागलपुर जेल में बन्द किया गया। साथ ही 50 रुपया जुर्माना एवं सजा की अवधि छः माह सुनाया गयी। 1942 ई. में जेल से आने के बाद श्रीकृष्ण सिंह (पहले मुख्यमंत्री) ने उन्हें ‘राष्ट्रवाणी’ पत्रिका का प्रबंध निदेशक बनाया।

वर्ष 1967 मे दूसरी बार मधु लिमये आम चुनाव के लिये पुन: खड़े हुए तो तौफिर दियारा में प्रचार के दौरान उन्हें पीट कर घायल कर दिया गया। सदर अस्पताल में भर्ती श्री लिमये को देखने जनता उमड़ पड़ी। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के श्री लिमये ने इस बार कांग्रेस के सी.एस.सिंह को पराजित किया। वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ के नारे की आंधी में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के मधु लिमये कांग्रेस के देवनंदन प्रसाद यादव (डी.पी.यादव) से अपनी मुंगेर लोकसभा सीट हार गये।गिद्धौर के महाराजा निर्दलीय प्रत्याशी प्रताप सिंह तीसरे नंबर पर रहे।डी.पी: यादव ने कांग्रेस को नई संजीवनी दी। इसके बाद मधु लिमये ने वर्ष 1973 बांका उपचुनाव और वर्ष 1977 में बांका से जीत हासिल की।मधु लिमये के दिल में बिहार बसता था, जहां से वह लोकसभा में पहुंचे थे। उन्हें बिहार के समाज और संस्कृति की गहरी समझ थी। मधु लिमये ने एक बार बताया था कि गर्मियों में बिहारियों को लगातार मीठे आम मिल जाएं तो वह तृप्त हो जाते हैं। इसी क्रम में उन्होंने बताया था कि जर्दालु आम का स्वाद और खुशबू अद्वितीय होती है। मधु लिमये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरआरएस) के विचारों से पूरी तरह असहमत रहते थे। मधु लिमये ने जनता पार्टी में जनसंघ घटक के सदस्यों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठा दिया था। मांग की कि जिन लोगों ने भी जनता पार्टी की सदस्यता ले रखी है, उन्हें आरएसएस की सदस्यता छोड़नी होगी। जनता पार्टी का कोई भी सदस्य आरआरएस जैसे 'सांप्रदायिक मानसिकता' वाले संगठन का सदस्य नहीं हो सकता। यह दोहरी सदस्यता नहीं चलेगी। जनता पार्टी का विभाजन हुआ और जुलाई 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी। मधु लिमये की आरएसएस से असहमति मोरारजी देसाई की सरकार गिरने का कारण बनी थी।

वर्ष 1977 के चुनाव में भारतीय लोक दल (बीएलडी) के श्री कृष्ण सिंह ने कांग्रेस के देवेन्द्र प्रसाद यादव को पराजित कर दिया। वर्ष 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (उर्स) के देवेन्द्र प्रसाद यादव ने इंदिरा कांग्रेस उम्मीदवार तारिणी प्रसाद सिंह को मात दी। वर्ष 1984 में कांग्रेस के देवेन्द्र प्रसाद यादव ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के बह्नानंद सिह को पराजित किया। जनता पार्टी के सैय्यद फजल अहमद तीसरे और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रामलखन गुप्ता चौथे नंबर पर रहे! रांची स्थित बिहार विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नात्कोत्तर की उपाधि हासिल करने वाले देवेन्द्र प्रसाद यादव राजनीति में आने से पहले प्रोफेसर और कनिष्ठ वैज्ञानिक थे। विभिन्न अकादमिक और शोध संगठनों से करीबी तौर पर जुड़े श्री यादव ने ‘ग्रासरूट प्लानिंग’, ‘डायनामिक्स ऑफ डेवलपमेंट’ और ‘यूरेनियम एंड बियोंड’ सहित कई पुस्तकें लिखी हैं। वह इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में 1971-77 के बीच शिक्षा राज्य मंत्री रहे। वह राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस कार्य समिति के भी सदस्य रहे।

वर्ष 1989 में जनता दल के धनराज सिंह ने कांग्रेस के देवेन्द्र प्रसाद यादव को पराजित किया। वर्ष 1991 में भाकपा के बह्नानंद मंडल ने जनता पार्टी के धनराज सिंह को पराजित किया। कांग्रेस प्रत्याशी देवेन्द्र प्रसाद यादव तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1996 में समता पार्टी के बह्नानंद मंडल ने जनता दल के पूर्व मंत्री उपेन्द्र प्रसाद वर्मा को शिकस्त दी। कांग्रेस उम्मीदवार देवेन्द्र प्रसाद यादव तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1998 में राष्ट्रीय जनता दल के विजॉय कुमार विजॉय ने समता पार्टी के बह्नानंद मंडल को मात दी। जनता दल के रामदेव सिंह यादव तीसरे जबकि समाजवाादी पार्टी के देवेन्द्र प्रसाद यादव चौथे नंबर पर रहे।

वर्ष 1999 में जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के बह्नानंद मंडल ने राजद के विजॉय कुमार विजॉय को मात देकर जीत की हैट्रिक लगायी। वर्ष 2016 में शुरू हुआ मुंगेर का गंगा पुल (श्रीकृष्ण सेतु) पुल एनएच-31 को जोड़ता है। इससे उत्तर बिहार के कई जिलों में सुगमतापूर्वक कम समय में पहुंचा जा सकता है। पुल निर्माण के लिए यहां के नेताओं को काफी संघर्ष और आंदोलन करना पड़ा था। पुल निर्माण से जुड़ी जागृति संस्था के बैनर तले 1996 में तत्कालीन सांसद ब्रह्मानंद मंडल ने 14 दिनों का उपवास रखा था। पुल से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया यह है कि कांग्रेस सांसद डी.पी. यादव कहते थे कि उत्तरवाहिनी गंगा की तेज धार के कारण यहां पुल नहीं बन सकता। यदि मुंगेर में गंगा पर पुल बन जायेगा तो हथेली पर सरसों पैदा कर लूंगा। हालांकि, बाद में उन्होंने ही पुल के अलाइनमेंट को एनएच से जोड़वाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।

वर्ष 2004 में राजद के जय प्रकाश नारायण यादव ने जदयू प्रत्याशी पूर्व विघायक डा. मोनाजिर हसन को पराजित किया। जयप्रकाश नारायण यादव मनमोहन सिंह की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में मंत्री रहे थे। डा. मोनाजिर हसन वर्ष 2009 में बेगूसराय चुनाव में सांसद बने थे।वर्ष 2009 में जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने राजद के रामवदन राय को पराजित किया। वर्ष 2014 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) प्रत्याशी पूर्व सांसद सूरज भान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने जदयू के राजीव रंजन सिंह को मात दी। वर्ष 2019 में जदयू के राजीव रंजन सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व विधायक अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को पराजित किया।

मुंगेर कभी कांग्रेसियों का गढ़ हुआ करता था। लोग कहते थे कि मुंगेर की हवाओं में कांग्रेस का नशा घुला हुआ है। मुंगेर से चार बार कांग्रेस ने परचम लहराया लेकिन 1984 के बाद कांग्रेस कभी नहीं जीत पायी। देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी (भाजपा) का केसरिया यहां कभी नहीं लहराया है। जनता दल यूनाईटेड ने तीन बार, राजद और संयुक्त सोश्लिस्ट पार्टी ने दो-दो बार, भारतीय लोक दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उर्स,जनता दल,समता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी ने एक-एक बार मुंगेर के किले पर राज किया है।

मुंगेर संसदीय क्षेत्र कुल छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। जिसमें से दो मुंगेर और जमालपुर मुंगेर जिले में हैं। वहीं सूर्यगढ़ा और लखीसराय, लखीसराय जिले जबकि बाढ़ और मोकामा पटना जिले में है। तीन विधानसभा सीट मुंगेर, लखीसराय और बाढ़ में भाजपा का कब्जा है।लखीसराय से उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा विधायक हैं।मोकामा में राजद विधायक नीलम देवी और सूर्यगढ़ा से राजद विधायक प्रह्लाद यादव कुछ दिन पूर्व बिहार विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण के दौरान राजद को छोड़ राजग के खेमे में आ गये थे। जमालपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है।

जनता दल यूनाईटेड के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुंगेर संसदीय सीट पर तीसरी बार मैदान में हैं। इससे पूर्व उन्होंनेवर्ष 2009 में बेगूसराय से चुनाव जीता था।पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुंगेर में राजीव रंजन सिंह के समर्थन में चुनावी रैली को संबोधित किया था। मुंगेर संसदीय क्षेत्र में नये परिसीमन के बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में राजीव रंजन सिंह ने मुंगेर संसदीय क्षेत्र को अपना राजनीतिक ठिकाना बनाया, वे यहां से पहली बार सांसद बने थे। उसके बाद से अब तक हुए तीनों संसदीय चुनाव में राजीव रंजन सिंह मुंगेर सीट पर पूरी मजबूती के साथ लड़े। दो बार वह अपनी जीत भी दर्ज करा चुके हैं। खास बात यह है कि ललन सिंह को जीत तभी मिली, जब वे राजग के उम्मीदवार रहे। वर्ष 2014 में उनकी पार्टी जदयू, राजग से अलग थी, तब राजग में शामिल लोजपा की वीणा देवी ने उन्हें पराजित किया था। ललन सिंह एक बार फिर राजग के बैनर तले मुंगेर से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) ने श्री ललन सिंह के विरूद्ध राजद की अनीता देवी महतो को चुनावी मैदान में उतारा है। अनीता देवी महतो, बाहुबली अशोक महतो की पत्नी हैं।अनीता देवी महतो का नाम पहली बार मार्च 2024 में सुर्खियों में तब आया था, जब उन्होंने अपनी उम्र से काफी बड़े अशोक महतो से शादी की थी।अशोक महतो बहुचर्चित नवादा जेल ब्रेक कांड में 17 साल की सज़ा काट चुके हैं। राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुंगेर संसदीय सीट पर दूसरी बार जीतने की फिराक में है, वहीं राजद की अनीता देवी यहां से जीतकर अपनी सियासी पारी का शानदार आगाज करना चाहती है।

राजीव रंजन सिंह सफलता को लेकर आश्वस्त दिखते हैं, लेकिन चुनाव और जंग में आप तब तक निश्चित नहीं हो सकते जब तक लड़ाई पूरी न हो जाए, इसीलिए यहां पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी के अन्य बड़े नेता भी यहां लोगों को रिझाने में लगे हैं। लोगों को यह समझाने की कोशिश हो रही है कि कैसे नीतीश कुमार और मोदी की जोड़ी उनकी किस्मत बदल देगी। जातीय गठजोड़ को तोड़कर चुनाव को विकास के मुद्दे पर लाने का भी प्रयास किया जा रहा है। ललन सिंह अपने किए गए विकास कार्यों, नीतीश कुमार के आशीर्वाद और मोदी लहर पर भी उम्मीदें टिकाए हुए हैं। उनका विश्वास है कि नीतीश कुमार का जादू जाति के बंधनों को तोड़ देगा।

वहीं राजद ने अनीता देवी को टिकट देकर जाति साधने की कोशिश की है। जहां ललन सिंह मानते हैं कि लोग नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के किए गए विकास कार्यों को देखेंगे और किसी भी जातीय समीकरण के झांसे में नहीं आएंगे, वहीं अनीता देवी को उमीद है कि लालू यादव का कुनबा और साथ ही उनकी अपनी जाति का समर्थन उनका बेड़ा पार करेगा। अनीता देवी अपने पति के बाहुबल और राजद ,कांग्रेस और वामदल के समर्थन के भरोसे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश कर रही हैं।

मुंगेर संसदीय सीट से जदयू, राजद, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत 12 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 20 लाख 44 हजार 34 है। इनमें दस लाख 78 हजार 548 पुरूष, नौ लाख 56 हजार 12 महिला और 52 अन्य और सर्विस वोटर 9422 हैं, जो चौथे चरण में 13 मई को होने वाले मतदान में इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे। मुंगेर के ‘लाल किले’ पर जदयू और राजद दोनों की नजर है। देखना दिलचस्प होगा कि ‘लाल किले’ पर कौन अपना विजयी पताका लहराने में कामयाब हो पाता है।यह तो 04 जून को नतीजे के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा।