किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हरियाणा सरकार की योजनाएं लाने लगी रंग

सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर परम्परागत खेती छोड़ अपनाई बागवानी, अब दूसरों को दे रहे रोजगार, सोनीपत के प्रगतिशील किसान श्याम सिंह ने खेती के प्रति बदल दी सोच

किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हरियाणा सरकार की योजनाएं लाने लगी रंग

चंडीगढ़ : खेती घाटे का सौदा नहीं है बल्कि यदि समय के साथ बदलाव किया जाए तो कृषि में आय बढ़ सकती है। हरियाणा सरकार प्रदेश के किसानों को नए तरीक़े और तकनीक अपनाकर आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। सरकारी प्रोत्साहन के फलस्वरूप प्रदेश के किसान नजरिया बदलकर परंपरागत खेती की जगह बागवानी को अपनाएं तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। बागवानी से किसान अपने उत्पादों को प्रोडेक्ट के रूप में प्रस्तुत कर किसान उत्पादक समूह (एफपीओ) बनाकर खुद भी मार्केटिंग कर सकते हैं।
नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में हरियाणा मंडप में ऐसे किसानों की स्टॉल हैं, जिन्होंने राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ लेते हुए औषधीय पौधों से हर्बल प्रोडेक्ट तैयार कर बदलाव की कहानी के नायक बने है। खेती से खुद के साथ दूसरों को रोजगार की सोच के साथ आगे बढ़ रहे सोनीपत के एमपी माजरा निवासी श्याम सिंह ने बागवानी से अपने ही प्रोडेक्ट तैयार किए हैं। हरियाणा मंडप की स्टॉल पर उन लोगों की अधिक भीड़ देखी जा रही है जो हर्बल प्रोडेक्ट खरीदने में रूचि रखते है। हरियाणा से बाहर के लोग भी अच्छी खासी संख्या में हर्बल उत्पादों की इन स्टॉलों पर नजर आ रहे हैं। उन्हीं में से एक किसान श्याम सिंह कुछ वर्ष पहले तक अन्य किसानों की तरह ही परंपरागत खेती करते थे लेकिन उनके पिता श्री करण सिंह ने हरियाणा सरकार की योजनाओं पर अमल करते हुए उन्हें औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित किया।
आंवला से मिला खेती को प्रोत्साहन
किसान श्याम सिंह ने बताया कि उनके पास 18 एकड़ जमीन है। उन्होंने सबसे पहले आंवला 2 एकड में लगाया और उसके बाद आवंला की खेती के बीच में ही हल्दी, सरसों, मूंगफली व सौंफ की खेती करने लगे। बागवानी में बड़ा बदलाव 2014 के बाद आया जब उन्होंने आंवला से अलग-अलग प्रोडेक्ट बनाने शुरू किये और अब वे 5 एकड़ में आंवला की खेती कर रहे हैं।
35 से अधिक हर्बल प्रोडेक्ट कर रहे तैयार, 17 लोगों को दे रहे रोजगार
श्याम सिंह ने बताया कि उनके यहां आंवला, बेलगिरी, सौंफ, धनिया, मोरिका, सरसों, गुलाब की खेती करने के साथ इनके हर्बल प्रोडेक्ट भी तैयार किए जा रहे है। शुरू में उनके पास आंवला के कुछ प्रोडेक्ट तैयार होते थे लेकिन अब वे 35 प्रकार के प्रोडेक्ट तैयार कर रहें हैं जिनमें आंवला कैंडी, आंवला अचार, लड्डू, मुरब्बा, बर्फी, पाउडर, जूस, गुलाब से गुलाबजल व गुलकंद प्रमुख हैं। उन्होंने बताया कि अब उनके यहां 17 लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
जब सोच बदले तब सवेरा
प्रगतिशील किसान श्याम सिंह ने बताया कि परंपरागत खेती की बजाय बागवानी में फायदा है लेकिन किसान को अपनी सोच बदलनी होगी और जब वह बागवानी में कदम बढ़ाएगा तब उसे अपने प्रोडेक्ट बनाने की भी ललक पैदा होगी। वह कहते है कि किसान को बागवानी की राह पकड़नी चाहिए। जब सोच बदले तभी सवेरा आएगा। उन्होंने हरियाणा सरकार की एफपीओ योजना का उल्लेख करते हुए बताया कि अब तो किसान अपने समूह बनाकर उत्पादों की मार्केटिंग भी कर सकते है जिससे उनकी आमदनी बढ़ेगी।
खेत में ही आउटलेट, वहीं पहुंच रहे खरीददार
प्रगतिशील किसान ने बताया कि मार्केटिंग की आरंभ में कुछ समस्या आती है। जैसे ही लोगों को उत्पादों के बारे में जानकारी हासिल होती है तो वे खरीददारी के लिए आने लगते हैं। उन्होंने खुद अपने खेत में आउटलेट बनाया हुआ है, जहां लोग उन द्वारा निर्मित प्रोडेक्ट खरीदने पहुंचते है। श्याम सिंह के अनुसार इसके अलावा वे कई जिलों में भी अपने प्रोडेक्ट सप्लाई कर रहे हैं।
सरकार की योजना से मिला सहारा
श्याम सिंह के अनुसार पहले बागवानी विभाग ने उन्हें आंवला प्रोडेक्ट बनाने के लिए 11 लाख रूपये के प्रोजेक्ट में 40 प्रतिशत की सब्सिडी उपलब्ध कराई थी। इसके बाद उन्होंने प्रोजेक्ट को बड़ा करने के लिए एमएसएमई योजना के अंतर्गत भी लोन लिया। उन्होंने बताया कि परंपरागत खेती की अपेक्षा बागवानी और हर्बल में उन्हें तीन गुना अधिक मुनाफा हो रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा किसानों के लिए बागवानी क्षेत्र में कई योजनाएं चलाई हुई है जिनमें अच्छी खासी सब्सिडी भी दी जा रही है। किसानों को सरकार की इन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने भी बताया कि वर्ष 2022-23 में बागवानी की विभिन्न स्कीमों के तहत हरियाणा प्रदेश में 25 हजार लाभग्राहियों को 166 करोड़ 20 लाख रुपये की सब्सिडी दी गई है। राज्य सरकार निरंतर किसानों की आय बढ़ाने के लिए संकल्पबद्ध है और इस दिशा में कई योजनाओं को धरातल पर लागू किया गया है, किसानों को केवल खेती के प्रति अपनी सोच और तरीके बदलने की आवश्यकता है।