तेलंगाना में भावनाओं से ज्यादा मुद्दों की बात बीआरएस पर भारी पड़ रही कांग्रेस

तेलंगाना के वर्तमान विधानसभा चुनाव को देखें तो कहीं ना कहीं मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है

तेलंगाना में भावनाओं से ज्यादा मुद्दों की बात बीआरएस पर भारी पड़ रही कांग्रेस

मध्य प्रदेश :  राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी पट्टी राज्यों में चुनाव को लेकर जितनी चर्चा है, उसकी तुलना में तेलंगाना चुनाव पर चर्चा बेहद ही काम हो रही है। 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश से अलग गठित तेलंगाना फिलहाल

राज्य में तीसरी विधानसभा चुनाव का सामना कर रहा है। पहले और दूसरे चुनाव में टीआरएस यानी कि तेलंगाना राष्ट्र समिति को जीत मिली थी। फिलहाल यह नाम भारत राष्ट्र समिति हो गया है और इसके मुखिया तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव हैं जिन्होंने तेलंगाना की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई है।

तेलंगाना के वर्तमान विधानसभा चुनाव को देखें तो कहीं ना कहीं मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है जहां बीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी की उपस्थिति मजबूत दिखाई दे रही है। फिर भी कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य मुकाबला बीआरस और कांग्रेस के बीच है।

वहीं, भाजपा अपनी पकड़ को यहां मजबूत करने की उम्मीद कर रही है। दिलचस्प बात यह भी है कि आंध्र प्रदेश में राजनीतिक दबदबा रखने वाली तेलुगू देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस का तेलंगाना में दखल न के बराबर है। जब तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था तब राज्य में कांग्रेस और टीडीपी ने कई दफा शासन किया था। बावजूद इसके तेलंगाना में टीडीपी का कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।