सेंथेक्विन को अमेरिका और यूरोप में तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी

कंपनी तीसरे चरण के परीक्षण की यूएस-एफडीए से सीधे स्वीकृति पाने वाली अब तक की पहला दवा बन गई है

सेंथेक्विन को अमेरिका और यूरोप में तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी

नई दिल्ली : नई नई दवाओं को विकसित करने वाली कंपनी फार्माज़ इंक की सहायक इकाई फार्माज़ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की भारत में विकसित श्रेणी में पहली दवा सेंथेक्विन को अमेरिका और यूरोपीय संघ में सीधे तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी मिल गयी है।

कंपनी के संस्थापक डॉ अनिल गुलाटी ने यहां यह घोषणा करते हुये कहा कि उनकी कंपनी तीसरे चरण के परीक्षण की यूएस-एफडीए से सीधे स्वीकृति पाने वाली अब तक की पहला दवा बन गई है। उन्होंने कहा कि फार्माज़ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने मई 2020 में भारत में हाइपोवोलेमिक शॉक लाइफाक्विन ( सेंथेक्विन) के प्रबंधन के लिए विपणन प्राधिकार प्राप्त किया था। हाइपोवोलेमिक शॉक एक प्राणघातक चिकित्सीय अवस्था होती है जिसमें मृत्यु दर 20 प्रतिशत है। यह रोग शरीर में द्रव की अत्यधिक कमी के कारण होता है और इसके फलस्वरूप उत्तकों में द्रव का प्रसार और ऑक्सीकरण घट जाता है जिससे मरीज की स्थिति बहुत खराब हो जाती है।

उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी अब तक भारत में इस दवा की सात हजार खुराक मरीजों को दे चुकी है और इसका अब तक कोई साइड इंफेक्ट नहीं दिखा है। कंपनी भारत में शीघ्र ही इसके व्यापक विपणन की रणनीति घोषित करने वाली है।

उन्होंने कहा कि सेंथेक्विन साइट्रेट एक पुनर्जीवित करने वाला एजेंट है जो हाइपोवोलेमिक शॉक के प्रबंधन में काम आता है। यह हृदय के आउटपुट में सुधार करता है और इसे धमनियों में संकुचन या रक्तचाप में वृद्धि के बगैर प्रभावकारी पाया गया था। यह एक यौगिक है जो क्रिया के एक अनूठी मैकेनिज्म के द्वारा कार्य करता है। जब हमारे रक्त का आधे से अधिक रक्तसंचार के शिरा पक्ष (वेनस साइड) में एकत्र हो जाता है और ऊतकों को ऑक्सीजन एवं पोषण नहीं पहुंचता है, तब सेंथेक्विन उस रक्त को हृदय और रक्तसंचार के धमनीय पक्ष की ओर मोड़ सकता है। इस प्रकार यह रक्त का प्रसार बढ़ाता है और ऊतकों में ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वों की आपूर्ति में वृद्धि करता है। इस प्रकार अंग निष्क्रिय होने से बच जाता है। डॉ गुलाटी ने कहा कि भारत में पहले किये जा चुके चिकित्सीय अध्ययनों में सेंथेक्विन रक्तचाप में सुधार करने और मृत्यु की आशंका कम करने में सुरक्षित एवं प्रभावकारी पाया गया है। इसे पूरे देश में 250 से अधिक अस्पतालों में लगभग 7000 रोगियों को दिया जा चुका है। अभी चल रहे चौथे चरण के चिकित्सीय अध्ययन में अनेक प्रमुख भारतीय अस्पतालों में अभी तक 139 रोगियों का नामांकन किया गया है।

उन्होंने कहा ‘अमेरिका और यूरोपीय संघ में यूएस-एफडीए द्वारा स्वीकृत फेज-3 क्लिनिकल ट्रायल के लिए सीधे स्वीकृति प्राप्त करना हमारे लिए सचमुच गौरव का पल है। सेंथेक्विन को पहली बार 1970 के दशक की शुरुआत में सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट, लखनऊ में संश्लेषित किया गया था। लेकिन इसे एक औषधि के रूप में विकसित नहीं किया जा सका था। कई दशकों के बाद डॉ. मनीष लुवहले को सिलसिलेवार प्रयोग करने का दायित्व दिया गया, और परिणाम इतने आशाजनक थे कि हमने रक्तसंचार की निष्क्रियता के कारण शॉक में चले जाने वाले रोगियों के लिए इसे एक दवा के रूप में विकसित करने का फैसला किया।’