योगी राज में विधायिका पर भारी है यूपी की कार्यपालिका

योगी को छोड़कर यूपी के अन्य सभी राजनेता बेईमान और भ्रष्टाचारी हैं। सभी दलों में अच्छे-बुरे दोनों किस्म के नेता मौजूद हैं।

योगी राज में विधायिका पर भारी है यूपी की कार्यपालिका

उत्तर प्रदेश :  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न केवल सख्त शासक हैं। उनकी छवि काफी साथ-सुथरी है। करीब साढ़े छहः साल के शासनकाल में योगी सरकार पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा है। यह एक अच्छी बात है। जनता भी ऐसी ही सरकार चाहती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि योगी को छोड़कर यूपी के अन्य सभी राजनेता बेईमान और भ्रष्टाचारी हैं। सभी दलों में अच्छे-बुरे दोनों किस्म के नेता मौजूद हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का भी यही ‘मिजाज’ है। यहां भी अन्य दलों की तरह दोनों किस्म के नेता देखने को मिलते हैं। मगर बीजेपी आलाकमान को अपने किसी भी नेता पर भरोसा नहीं है। यहां तक की योगी सरकार के मंत्री भी सरकारी मशीनरी के सामने ‘पंख कटे’ नजर आते हैं। इसकी वजह है कि बीजेपी में सभी नेताओं को एक ही तराजू में तौला जा रहा हैं। कहने को तो उसके तमाम नेता जनप्रतिनिधि होने का भी रूतबा रखते हैं, लेकिन इन्हें पूरी तरह से दंतविहीन बना दिया गया है। यह न तो कभी अपने क्षेत्र में पुलिस उत्पीड़न के शिकार लोगों के पक्ष में थाने जा सकते हैं, न शासन-प्रशासन में बैठे अधिकारी उनकी सुनते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी मशीनरी को आदेश दे रखा है कि यदि कोई बीजेपी नेता उनके पास किसी की सिफारिश लेकर आये तो उसकी बात सुनने की आवश्यता नहीं है, बल्कि अधिकारी अपने विवेक से सही गलत का फैसला लें। यह सब बातें किसी फाइल में तो नहीं कोड की गई हैं, परंतु राजनीति के गलियारों में यह चर्चा आम है कि जिस तरह से समाजवादी पार्टी की सरकार के समय उसके (सपा) सांसद/मंत्री/विधायक आदि जनप्रतिनिधि पुलिस और सरकारी मशीनरी पर दबाव बना लेते थे, वैसा दबाव बीजेपी के जनप्रतिनिधि नहीं बना पाते हैं। होता यह है कि जब भी बीजेपी का कोई नेता किसी सरकारी अधिकारी या पुलिस के पास पहुंचता है तो उसे सीएम योगी का फरमान याद दिला दिया जाता है। या यों कहें उन्हें अपमानित करके वापस भेज दिया जाता है।