सम्मान दिलाने के लिए नगरवधुओं के आंगन की माटी से बनती है दुर्गा प्रतिमा : दत्ता

मान्यता अनुसार जब तक नगरवधू के आंगन की माटी नहीं मिलती है तब तक दुर्गा प्रतिमा का आरंभ अधूरी मानी जाती है

सम्मान दिलाने के लिए नगरवधुओं के आंगन की माटी से बनती है दुर्गा प्रतिमा : दत्ता

प्रयागराज : शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा पंडालों में प्रतिष्ठित होने वाली महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा में नगरवधू के आंगन की माटी के महत्व के पीछे सामाजिक तिरस्कार को एक प्रकार से सम्मान प्रदान कर समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का तृण प्रयास है।

प्रयागराज जीटीवी नगर दुर्गा पूजा समिति (करेली) के अध्यक्ष प्रदीप दत्ता ने बताया कि हिंदू संस्कृति में कसब (वेश्यावृत्ति) को भले ही गलत और समाज में देह व्यापार करने वाली महिला को घृणा एवं तिरस्कार की नजर से देखा जाता हो, लेकिन नवरात्र के इस पवित्र त्योहार में ‘कोठे’ के आंगन की माटी के बिना मां दुर्गा प्रतिमा अधूरी मानी जाती है। इस के लिए अलग-अलग तमाम मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं। मान्यता अनुसार जब तक नगरवधू के आंगन की माटी नहीं मिलती है तब तक दुर्गा प्रतिमा का आरंभ अधूरी मानी जाती है, इसीलिए मां पूजा भी स्वीकार नहीं करती हैं। उन्होंने बताया कि दुर्गा पूजा के लिए ऐसे-ऐसे स्थानों के माटी मिलाए जाते हैं, खासकर नगरवधू के आंगन की माटी से देवी की प्रतिमा बनना इस बात का संदेश है कि समस्त नारी, चाहे वह एक वेश्या ही क्यों न हो, मातृत्व शक्ति का उद्बोधन करती है। वह ‘सर्वभूतेषु’ हैं

श्री दत्ता ने बताया कि नगरवधू अपनी पूरी जिंदगी तिरस्कार झेलती हैं। उसके दर्द को मां दुर्गा महसूस करती है, इसी कारण प्रतिमा में कोठे की माटी का उपयोग कर उनको सम्मान प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। वहीं, कई लोग इस परंपरा को समाज में सुधार और बदलाव की दृष्टि से देखते हुए उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का एक जरिया भी माना जाता है। उन्होंने बताया कि दुर्गा पूजा के आध्यात्मिक,धार्मिक और सामाजिक और कई महात्म्य हैं। यह पूजा नारी शक्ति, के प्रति समान आदर-सम्मान और प्रेम को दर्शाता है। भारतीय महाकाव्यों और पुराणों के विशेषज्ञों का मानना है कि दुर्गा पूजा के अवसर पर देवी की प्रतिमा की स्थापना पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है, जो जगत में सामाजिक सुधारों का पताका लिए किसी मिशन के मानिंद नजर आती है।