गोवर्धन में मुड़िया पूनो मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब

ब्रज के महान संत सनातन गोस्वामी के परिनिर्वाण होने के बाद उनके शिष्यों ने सिर मुड़ा कर उनका डोला निकाल कर पतित पावनी मानसी गंगा की परिक्रमा कीर्तन करते हुए की थी और ठाकुर से प्रार्थना की थी कि उनके गुरू की आत्मा को गोलोक में स्थान मिले

गोवर्धन में मुड़िया पूनो मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब

मथुरा  - गोवर्धन में इस बार निर्धारित तिथि से पहले शुरू हुये मुड़िया पूनो मेले में गिरि गोवर्धन की परिक्रमा करने वालों का हुजूम लगातार बढ़ रहा है तथा आज रात तक परिक्रमार्थियों की संख्या पांच लाख के आंकड़ को पार कर सकती है।

ब्रज के महान संत सनातन गोस्वामी के परिनिर्वाण होने के बाद उनके शिष्यों ने सिर मुड़ा कर उनका डोला निकाल कर पतित पावनी मानसी गंगा की परिक्रमा कीर्तन करते हुए की थी और ठाकुर से प्रार्थना की थी कि उनके गुरू की आत्मा को गोलोक में स्थान मिले। ब्रज में उनकी इस प्रकार की भगवत आराधना यात्रा को मुड़िया निकलना कहते हैं। मथुराधीश एवं मदनमोहन मन्दिर के मुखिया एवं कई धार्मिक पुस्तकों के लेखक ब्रजेश शर्मा ने बताया कि लगभग पांच दशक पूर्व सनातन गोस्वामी के शिष्यों में आपस में विवाद हो गया और तब से दो मुड़िया निकलने लगीं। मुड़िया निकलने के कारण यह मेला मुड़िया पूनो मेला कहा जाने लगा।

उन्होंने बताया कि अषाढ़ पूर्णिमा के दिन पहली मुड़िया राधाश्यामसुन्दर मन्दिर से निकलती है। इस बार इसका नेतृत्व रामकिशन दास बाबा करेंगे। यह मुड़िया हर हालत में चार बजे समाप्त हो जाएगी और फिर चार बजे दूसरी मुड़िया चैतन्य महाप्रभु मन्दिर से महन्त गोपालदास के नेतृत्व में निकलेगी। मुड़िया निकलना मेले की समाप्ति का द्योतक होता है। पहले यह मेला एक दिन का होता था मगर परिक्रमार्थियों की बढ़ती भीड़ के कारण यह मेला तीन दिन , फिर पांच दिन और अब सात या आठ दिन का हो गया है।

मान्यता है कि सनातन गोस्वामी को श्यामसुन्दर ने उन्हें विराट रूप के दर्शन दिए थे। दानघाटी मन्दिर के सेवायत आचार्य मथुरा प्रसाद कौशिक के अनुसार सनातन गोस्वामी वृन्दावन में राधा दामोदर मन्दिर में रहते थे तथा वहां से रोज 35 किलोमीटर पैदल चलकर गोवर्धन आते थे और यहां पर गिर्राज जी की सप्तकोसी परिक्रमा करते थे तथा फिर पैदल वृन्दावन चले जाते थे। यानी वे प्रतिदिन लगभग 93 किलोमीटर पैदल चलते थे।

उन्होंने बताया कि सनातन गोस्वामी जब वृद्ध हो गए तो एक बार परिक्रमा के दौरान वे थककर बैठ गए।श्यामसुन्दर बालक रूप में आए और उनसे कहा कि ’’ बाबा तू बूढ़ा है गयो है अब तू परिकम्मा च्यों करे’’।इतना सुनते ही सनातन के अश्रुधारा बह निकली। उन्हें इस बात का अफसोस हुआ कि अब उनकी परिक्रमा बंद हो जाएगी। बालक की सलाह न मानते हुए वे फिर चलने लगे तो ठाकुर ने उन्हें विराट स्वरूप के दर्शन दिए और उनसे कहा कि वे अब वृद्ध हो गए हैं और गोवर्धन की परिक्रमा करने के लिए न आया करें।

सेवायत आचार्य के अनुसार इसके बाद ठाकुर ने पास से ही एक शिला उठाई और उस पर जैसे ही अपने चरण कमल रखे शिला मोम की तरह पिघल गई। इसके बाद उन्होंने वंशी बजाकर उस सुरभि गाय को बुलाया जिसने गोवर्धन धारण लीला के बाद ठाकुर का दुग्धाभिषेक किया था। उन्होंने शिला पर उस गाय का खुर रख दिया तो उसका चिन्ह बन गया। इसके बाद उसी शिला पर उन्होंने अपनी लकुटी और बंशी रख दी तो उनके भी चिन्ह शिला पर अंकित हो गए। ठाकुर ने इसके बाद उस शिला को सनातन को दिया और कहा कि वे इस शिला को वृन्दावन में जहां रहते हों वहीं रख लें तथा इसकी चार परिक्रमा करेंगे तो उनकी गोवर्धन की एक परिक्रमा पूरी हो जाएगी।

आज भी यह शिला राधा दामोदर मन्दिर के गर्भगृह में रखी है तथा तड़के तीन बजे से वृन्दावनवासी इसकी चार परिक्रमा करते हैं और अपने घर चले जाते हैं। चूंकि चार परिक्रमा का विधान ठाकुर ने स्वयं बताया था इसलिए ब्रज में चार परिक्रमा का विधान बन गया है।

उन्होंने बताया कि मुड़िया पूनो मेला गुरू भक्ति का अनूठा नमूना बन गया है। इसी महान संत की स्मृति में यह मेला हर साल लगता है। इस साल यह मेला अभी से शुरू हो गया है।इसकी विशेषता यह है कि यह अनवरत सात दिन चलता रहता है तथा श्रद्धालु धूप की परवाह किये बिना इस भीषण गर्मी में भी दिन में भी परिक्रमा करते रहते हैं तथा गोवर्धन धाम का परिक्रमा मार्ग एक घनी माला का रूप ले लेता है। वैसे तो इस मेले में लगभग दो करोड़ श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं लेकिन अधिक मास पड़ने के कारण इस बार यह संख्या इसलिए कम हो सकती है कि अधिक श्रद्धालु अधिक मास में परिक्रमा कर पुण्य प्राप्त करते हैं। यह मेला प्रशासनिक व्यवस्था का एक टेस्ट भी होता है।