तपस्वी संत गीतानन्द महराज की 19वीं पुण्यतिथि मनाने वृंदावन में हाे रही तैयारियां

संत , समाज में पर सेवा और परोपकार की भावना जागृत कर दें तो यह धरती स्वर्ग बन सकती है

तपस्वी संत गीतानन्द महराज की 19वीं पुण्यतिथि मनाने वृंदावन में हाे रही तैयारियां

मथुरा : घट घट में भगवान के दर्शन करने वाले ब्रम्हलीन परम तपस्वी संत गीतानन्द महराज अपनी दानशीलता के कारण कलियुग के दधीच कहलाते थे। इस संत की उन्नीसवीं पुण्य तिथि रविवार (26 नवंबर) को गीता आश्रम वृन्दावन में मनाई जायेगी। संत की दानशीलता के कारण भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व़ अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था कि काश देश के सभी संत इस भावना के हो जायं तो भारत एक बार पुनःं सोने की चिड़िया बन सकता है। उनके सोने की चिड़िया कहने का तात्पर्य धन दौलत से न होकर वातावरण से था। उनका कहना था कि यदि संत , समाज में पर सेवा और परोपकार की भावना जागृत कर दें तो यह धरती स्वर्ग बन सकती है ।

पूर्व प्रधानमंत्री ने यह उदगार तब व्यक्त किये थे जब कारगिल युद्ध के दौरान संत गीतानन्द महराज ने उन्हें 11 लाख रूपए की थैली राष्ट्रीय सुरक्षा कोष के लिए भेंट की थी। विनम्रता की प्रतिमूर्ति इस महान संत ने उस समय पूर्व प्रधानमंत्री से कहा था कि इसमें उनका कोई योगदान नही है। यह राशि उनके शिष्यों की है तथा वे तो इसे देकर केवल पोस्टमैन का काम कर रहे हैं।

इस महान संत ने हरिद्वार, दिल्ली, पानीपत, कुरूक्षेत्र, कुल्लू, वृन्दावन समेत देश के विभिन्न भागों में न केवल 11 आश्रम इस आशय से बनवाए कि गरीब और मध्यम परिवार के लोग इनका लाभ ले सकें बल्कि ये आश्रम लोगों में समाज के प्रति कर्तव्य जगाने में प्रकाश पुंज का काम करें। वे दूरदर्शी संत थे तथा समय के बदलाव और बदलते जीवन मूल्यों के बारे में उन्हे पहले ही आभास हो गया था इसलिए उन्होंने गीता कुटीर तपोवन हरिद्वार में वृद्धाश्रम की स्थापना की। इस आश्रम में वृद्धजनों की भोजन आदि से लेकर दवा पानी की देखभाल उसी प्रकार से की जाती है जिस प्रकार घर में एक छोटे बच्चे के लिए की जाती है। वे गीता आश्रम वृन्दावन में भी वृद्धाश्रम की स्थापना करना चाहते थे किंतु वृन्दावन के आश्रम के पास भूमि न मिलने के कारण वहां वृद्धाश्रम नही खोल सके। उनकी सोच थी कि यदि वृन्दावन के गीता आश्रम से हटकर वृद्धाश्रम की स्थापना की जाएगी तो संभवतः वृद्धजनेा की वैसी देखभाल न हो पाए जिसके वे हकदार हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल मोतीलाल वोरा इस संत की दानशीलता तथा जनकल्याणकारी दृष्टिकोण से बहुत अधिक प्रभावित थे। वे कहते थे ’’वृक्ष कबहुं नहि फल भखै नदी न संचय नीर, परमारथ के कारणै साधुन धरा शरीर’’ संभवतः इसी महान संत के लिए कहा गया हैं। किसी जिले के भ्रमण के दौरान यदि उन्हें इस महान संत के उस जिले में आने का पता चल जाता था तो वे प्रोटोकाल तोड़कर उनका आशीर्वाद लेने जरूर जाते थे। उनका यह भी कहना था कि जिस प्रकार महाराज जी में जन कल्याण की भावना है वह बिना भगवत कृपा के संभव नही है और भगवत कृपा की वर्षा उसी पर होती है जो अपना सर्वस्व समाज को देने को तैयार रहता है।

गीता के प्रकाण्ड विद्वान इस तपस्वी संत ने हरिद्वार , वृन्दावन समेत कुछ आश्रमों में अन्न क्षेत्र की स्थापना की, जहां पर साधु संतों को दिन में एक बार घर जैसा भोजन, जाड़े से बचने के लिए गर्म वस्त्र आदि वितरित किये जाते हैं। अन्न क्षेत्र की व्यवस्था के लिए उन्होंने ऐसे शिष्य तैयार किये जिनमें घट घट में भगवान देखने की भावना कूट कूटकर भरी हो। गीता आश्रम वृन्दावन में तो उनके शिष्य डा़ अवशेषानन्द ने कोरोना काल में भी इस सेवा को विधिवत तब भी चलाया जब कि वे स्वयं कोरोना से ग्रसित हो गए थे। उनके गुरू द्वारा प्रारंभ किये गए अन्न क्षेत्र की व्यवस्था में व्यवधान न पड़े इसलिए वे विदेशों से भी धन लाकर इसे नियमित चला रहे हैं जिसमें साधुओं को भी समय समय पर नाना प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं। इसी प्रकार का क्रम गीता कुटीर तपोवन हरिद्वार तथा अन्य उन आश्रमों में चलता है जहां अन्न क्षेत्र की व्यवस्था होती है।

वे संतों के संत थे इसीलिए 26 नवंबर को उनकी पुण्य तिथि पर वृन्दावन के संत गीता आश्रम वृन्दावन आकर उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। गीता में दिए आदर्शों को अपने में ढालनेवाले इस तपस्वी संत का कहना था कि शिक्षा मनुष्य को असुरत्व से देवत्व की ओर ले जाती है। इसीलिए उन्होंने प्रत्येक आश्रम के साथ ऐसे संस्कृत विद्यालय खोलने का प्रयास किया जहां पर संस्कारयुक्त शिक्षा दी जाय क्योंकि संस्कारयुक्त शिक्षा से ही जीवन के मूल्यों को जीवंत रखा जा सकता है। वे हर साल एक मांह ऋशीकेष में तप करतेे थे और फिर वृन्दावन में सैकड़ों साधुओं और गरीब लोगों में प्रत्येक को श्वेटर, गर्म पैजामा, गर्म बनियाइन, गर्म मोजे, टोपा और कम्बल बाटते थे । यद्यपि अब इनकी संख्या हजारों में हो गई है किंतु उनके शिष्य अब भी उसी परंपरा को निभा रहे हैं तथा 26 नवंबर को उनकी पुण्य तिथि पर इन वस्त्रों का वितरण होने के कारण अब इनकी संख्या कई हजार पहुंच गई है।

वे कहते थे कि गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है इसलिए प्रत्येक परिवार को एक गाय जरूर पालना चाहिए तथा गो सेवा को भगवत सेवा मानकर गाय को रखना चाहिए। इसी भावना के तहत उन्होंने हरिद्वार समेत कुछ आश्रमों में गौशाला की स्थापना की। इस गौशालाओं में गायों की सेवा परिवार के किसी सदस्य से बढ़कर की जाती है तथा जो गौ शाला होने के बावजूद सफाई का आदर्श बना हुआ है। कुल मिलाकर स्वामी गीतानन्द महराज द्वारा स्थापित किये गए आश्रम बेसहारों का सहारा बन गए हैं।