इटावा के ऐतिहासिक काली वाहन मंदिर में लागू हुआ ‘ ड्रेसकोड ’

इस ड्रेस कोड को लागू करने के पीछे ऐसा कहा जा रहा है कि मंदिर प्रबंधन ने तय किया है कि सनातन धर्म से जुड़ी हुई परंपराओं का निर्वाह करने के लिए ही श्रद्धालु मंदिर परिसर में पूजा अर्चना करने के लिए आए। मंदिर प्रबंधन ने सभी श्रद्धालुओं के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया है।

इटावा के ऐतिहासिक काली वाहन मंदिर में लागू हुआ ‘ ड्रेसकोड ’

इटावा - उत्तर प्रदेश के इटावा में यमुना नदी के किनारे स्थापित महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक काली वाहन मंदिर में ड्रेस कोड लागू किया गया है। इस मंदिर के बारे में यह जनश्रुति है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वत्थामा सबसे पहले पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।

इस ड्रेस कोड को लागू करने के पीछे ऐसा कहा जा रहा है कि मंदिर प्रबंधन ने तय किया है कि सनातन धर्म से जुड़ी हुई परंपराओं का निर्वाह करने के लिए ही श्रद्धालु मंदिर परिसर में पूजा अर्चना करने के लिए आए। मंदिर प्रबंधन ने सभी श्रद्धालुओं के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया है।

काली वाहन मंदिर के मुख्य पुजारी सचिन गिरी का कहना है कि फैशन के दौर में महिला हो या पुरुष सभी लोगों ने अपना परिधान अत्याधुनिक तरीके से पहनना शुरू कर दिया है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव इस कदर हावी हो चुका है युवा सामान्य तौर पर विभिन्न प्रकार की पोशाकों में देखे जा सकते हैं। ऐसी ही पोशाकों को पहनकर महिला हो या पुरुष मॉल, बाजार, पिकनिक स्पॉट, रेस्टोरेंट्स, होटल्स में पहने हुए लोग दिखाई देते हैं। इस तरह के परिधानों को पहनकर मंदिर दर्शन पर प्रतिबंध लगना शुरू हो गया है। मंदिरों में ऐसी कपड़े पहन कर दर्शन करने आने वालों पर अब मंदिर प्रशासन ने चेतावनी देते हुए प्रवेश पर रोक लगा दी है।

उन्होंने कहा कि मंदिर प्रबंधन ने ड्रेस कोड लागू करने के बाद मंदिर परिसर में कई अनुरोध वाले पोस्टर लगाए हैं जिनमे साफ साफ लिखा है कि हाफ पेंट,बरमूडा,मिनी स्कर्ट,नाइट सूट और कटी फटी जींस पहन कर कोई भी श्रद्धालु मंदिर परिसर में पूजा अर्चना करने के लिए ना आए।

उन्होंने कहा कि सभी श्रद्धालुओं से मर्यादित कपड़े पहनने के लिए मंदिर प्रबंधन ने अनुरोध किया है। इस बाबत मंदिर परिसर में विनम्र अनुरोध के तमाम पोस्टर लगाए गए है।

उम्मीद ऐसी जताई जा रही है कि श्रद्धालु मंदिर को मंदिर की दृष्टि से देखेंगे पिकनिक स्पॉट की दृष्टि से नहीं देखेंगे और उसके बाद हर हाल में मंदिर प्रबंधन की ओर से दिए गए ड्रेस कोड की लेकर के निर्देशों का पालन करेंगे।

ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब खुले बाजार में ऐसे वस्त्रों की बिक्री हो रही है जो कहीं ना कहीं मर्यादा के विरुद्ध है और ऐसे वस्त्र आम चलन में व्यापक पैमाने पर आ चुके हैं तो फिर मंदिर प्रबंधन की ओर से दिए गए निर्देश अनुरोध का पालन श्रद्धालु वाकई में कर पाएंगे या नहीं यह कुछ ऐसे सवाल है जो जरूर इस समय जहन में घूम रहे हैं।

मंदिर प्रबंधन ने अमर्यादित कपड़े पहन कर आने वालो को चेतावनी देते हुए कहा है कि ऐसे कपड़े पहनकर लोग संस्कृति को दूषित करने के साथ ही धार्मिक और आध्यात्मिक स्थिति को भी भ्रमित करते हैं। इसलिए चेतावनी देते हुए मंदिर में पोस्टर लगाए गए हैं। संस्कृति को बचाकर अपने धर्म के नियमों का पालन करें।

सिद्ध पीठ के प्रमुख पुजारी सचिन गिरी ने कहा कि मंदिरों में सनातन धर्म के अनुसार ही आना चाहिए, जो महिलाएं छोटे कपड़े पहनकर मंदिरों में आती हैं, उससे अन्य लोग भ्रमित होते हैं और उनका ध्यान भटकता है। हमारी संस्कृति कहती है कि हम लोगों को पूरे कपड़े पहनकर मंदिर में प्रवेश करना चाहिए।

उनका कहना है कि हर हिंदू को अपनी संस्कृति के अनुसार नियमों का पालन करना चाहिये। यह महिला और पुरुष दोनों के लिए चेतावनी है। जो लोग इसको पढ़ेंगे, वो अपने घर, परिवार और रिश्तेदारों को मार्गदर्शन करेंगे। जिस तरह से लड़के, लड़कियां हाफ पैंट, फटी जींस पहनकर आते हैं, वो सही नहीं है। महिलाओं को साड़ी या सूट में मंदिर आना चाहिए।

संतोष कुमार नामक भक्त ने कहा कि वह इस मंदिर से करीब 30 साल से जुड़ा है। प्रतिदिन पूजा करने आता है। मंदिर के बाहर जो पोस्टर लगाए गए हैं, वो बिल्कुल सही हैं। सभी को पूरे कपड़े पहनकर ही मंदिर में आना चाहिए और मर्यादा में रहना चाहिए।

एडवोकेट राघव शर्मा का कहना है कि मंदिर प्रबंधन की ओर से जिस तरह की व्यवस्था की गई है उससे जाहिर है कि लोगो के जहन में बदलाव आयेगा और लोग सनातन संस्कृति की ओर मुखातिब होंगे ही साथ ही अपने भावों को अब श्रद्धा स्वरूप प्रकट कर सकेगे।