पूर्णता प्राप्त करने का नाम ही सेवा है, यही धर्म है - डॉ मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने करनाल स्थित श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर परिसर में नवनिर्मित आधुनिक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल का किया लोकार्पण

पूर्णता प्राप्त करने का नाम ही सेवा है, यही धर्म है - डॉ मोहन भागवत
पूर्णता प्राप्त करने का नाम ही सेवा है, यही धर्म है - डॉ मोहन भागवत

करनाल।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने रविवार को करनाल के इंद्री रोड स्थित श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर में नवनिर्मित आधुनिक सुविधाओं से युक्त मल्टी स्पेशलिटी चेरिटेबल हॉस्पिटल का लोकार्पण किया। इससे पूर्व कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने पर उत्प्रवर्तक जैन संत श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने बुके देकर उनका स्वागत किया। इसके पश्चात डॉ मोहन भागवत ने  पट्टिका का डोरी खींच कर अनावरण किया और अस्पताल परिसर में घूम कर विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं का जायजा लिया।


हस्पताल के अनावरण के बाद सभागार में पहुंचने पर जैन समाज के प्रमुख व्यक्तियों की ओर से डॉ मोहन भागवत को पगड़ी पहनाकर और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया गया। इस अवसर पर मंच पर सर्व धर्म विभूतियां उपस्थित रहीं। महाप्रभावी श्री घंटाकर्ण महावीर देव तीर्थ स्थान के वार्षिक स्थापना महोत्सव पर आयोजित भव्य एवं आध्यात्मिक वातावरण में डॉ मोहन भागवत व अन्य विभूतियों ने दीप प्रज्वलन कर समारोह की औपचारिक शुरुआत की।


समारोह को संबोधित करते हुए डॉ मोहन भागवत ने कहा कि हम वे नहीं हैं जो केवल अपने लिए जीते हैं। हमारी संस्कृति और परंपराओं में सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय की भावना निहित है। उन्होंने कहा कि हर परिस्थिति में परोपकार को हमने जीवन का अभिन्न अंग माना है। श्री भागवत ने कहा, समाज को मजबूत करके ही हम देश में अच्छी चीजें होते हुए देख सकते हैं। यदि हम सुखी रहना चाहते हैं, तो समाज को सुखी बनाना होगा।  डॉ मोहन भागवत ने कहा की मेरी वाणी के कारण यहां कुछ होने वाला है ऐसा नहीं है और ऐसा होता भी नहीं है। शब्दों का असर बहुत देर तक नहीं रहता वह क्षणभंगुर रहता है। शब्द सुनाई देते हैं बाद में उनका सुनाई देना भी बंद हो जाता है। शब्द जिनके पीछे तपस्या है, कृति है वह कृति ही परिणाम को जाती है।

उसका परिणाम भी चिरकाल तक टिकता है। उन्होंने कहा कि यहां प्रत्यक्ष काम हुआ है। आज अपने देश में सबसे बड़ी आवश्यकता है कि सबको को शिक्षा मिले, सभी स्वस्थ रहें। स्वास्थ्य लाभ के लिए व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार हो जाता है, क्योंकि यह दोनों बातें आज महंगी हो गई है और दुर्लभ भी हो गई है। ऐसी कोई विधि निकालनी होगी जिससे इसे सस्ता किया जा सके। अपनी परंपरा में कहा गया है की सबसे बड़ा दान ज्ञान का दान है और सबसे बड़ी सेवा स्वास्थ्य की है। इन दोनों बातों को ध्यान में रखते हुए अपने देश के प्रत्येक व्यक्ति के पास यह सुलभ और सस्ते दर में पहुंचे यह काम होना आवश्यक है। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि यह काम तब तक नहीं हो सकता जब तक इसे पूरा समाज मिलकर ना करे। पहले ऐसा होता था क्योंकि पहले इसको समाज ने संभाला था।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश लोगों ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा किस प्रकार लागू की थी यह एक प्रमाणित बात है। अंग्रेजों के आने से पहले हमारे देश में 70 से 80 प्रतिशत तक जनता साक्षर थी और बेरोजगारी लगभग नहीं के बराबर थी। अंग्रेजों ने इंग्लैंड में जो शिक्षा  व्यवस्था उस समय थी उसे यहां  लागू किया और यहां की शिक्षा व्यवस्था को तहस नहस कर दिया। हमारी शिक्षा व्यवस्था की खासियत थी कि उसमें वर्ण, जाति का भेद नहीं होता था। आदमी अपना जीवन खुद से चला सके उस प्रकार की शिक्षा मिलती थी। शिक्षा केवल रोजगार के लिए नहीं बल्कि ज्ञान का भी माध्यम थी। इसलिए शिक्षा का सारा खर्च समाज ने उठा लिया था। इनसे जो विद्वान , कलाकार , कारीगर निकले उनका लोहा दुनिया में माना जाता था। शिक्षा सस्ती और सुलभ थी। ऐसे ही स्वास्थ्य का था।  गांव में वैद्य हुआ करते थे , उनको बुलाना नहीं पड़ता था। मरीज का पता चलने पर घर जाकर उनका इलाज करते थे। पूरा गांव उनके बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य की चिंता करता था। अब यह परंपरा भारत से लुप्त होती जा रही है। दो तीन  पीढ़ी तक एक ही परिवार के डॉक्टर रहते थे। उनको मरीज की हिस्ट्री पता रहती थी इसलिए निदान आसान रहता था। यही नहीं उनका मरीज के साथ आत्मीयता का भाव बन जाता था। यही कारण है कि पूरी दुनिया में आज भी भारत के डॉक्टर को खोजा जाता है। इलाज के साथ-साथ मरीजों का हौसला बढ़ाने का उसके स्वभाव में है। शिक्षा और स्वास्थ्य आम आदमी तक कैसे पहुंचाया जाए अब यह विचार करने की आवश्यकता है। डॉ मोहन भागवत ने कहा कि यहां जो हस्पताल खोला गया गया वह केवल दवाखाना नहीं है बल्कि एक सेवा है। सेवा अभाव दूर करती है,  सेवा आवश्यकता को पूरा करती है। उन्होंने कहा कि सेवा मनुष्य की प्रवृत्ति है उसका लक्षण है। अगर  खाना खाते समय कोई भूखा सामने अगर आए तो मनुष्य का स्वभाव है कि वह उसको भी भोजन देता है। जब तक भूखा सामने होता है हम भोजन नहीं करते यह संवेदना है। इसकी यह विशेष पहचान भारत में आरंभ से ही है। यह हमारे डीएनए का एक भाग बन गई है। इसलिए हमारी संवेदना दुनिया को प्रभावित करती है।

उन्होंने कहा कि हमारी मान्यता है सुख परोपकार में है। परोपकार करके जीवन जियो,  स्वार्थ की सेवा का कोई लाभ नहीं होता। हमारी जो सेवा होती है इसमें अहंकार भी नहीं होता है। मनुष्य केवल अपने लिए नहीं जीता है, हमेशा समूह में ही जीता है। सबको अपना मानना यह मनुष्य का स्वभाव है।  जो व्यक्ति जितना बड़ा काम करता है उसे उतना ही सम्मान मिलता है। सत्ता और संपन्न लोग भी उसे खड़े होकर नमस्कार करते हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि  जिसके पास कुछ है वह तो सेवा करेगा ही लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है वह भी सेवा कर सकता है, जो कुछ है वह समाज का ही दिया हुआ है । जिसने दिया है उसे वापस भी करना चाहिए यह हमारा कर्तव्य है।  सेवा केवल धन से ही नहीं बल्कि शरीर से भी कर सकते हैं।  पशु और मनुष्य में जो अलग है वह धर्म है। धर्म का अर्थ पूजा नहीं है वह स्वभाव है।  इंसान हो तो इंसानियत चाहिए मानव हो तो मनुष्यता चाहिए वरना हाथ पैर खाने के लिए तो पशुओं में भी रहता है।  हम प्रयास करें , प्रयास कितना यशस्वी होता है इसकी चिंता नहीं करनी है। मानव से देवता तक की पूर्णता प्राप्त करने का नाम ही सेवा है।

पीयूष मुनि जी महाराज ने कहा कि 75 वर्षों का गौरवमई अंतराल आज संपूर्ण होने जा रहा है। जैन गुरुओं ने सत्य,अहिंसा ,शालीनता और सदाचार का उपदेश जनमानस को दिया। उन्होंने अनेक स्थानों पर डिस्पेंसरी, अस्पतालों और स्कूलों की स्थापना कर कल्याण के पथ पर अग्रसर किया। आज डॉक्टर मोहन भागवत जी ने इस स्थान पर आकर इसे पावन किया है। उनकी प्रेरणा से आज यहां पर  मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल का शुभारंभ हुआ है। मुझे विश्वास है कि उनके मंगलमय आगमन से यह संस्थान दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करते एक आदर्श चिकित्सा संस्थान के रूप में विकसित होगा और लोगों को निश्चित तौर पर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होगा।  प्रभु के मंगलमय आशीर्वाद से अन्य विधाएं भी यहां पर जुड़ती जाएंगी और क्षेत्र के ही नहीं बल्कि आसपास के लोगों को भी इसका भरपूर लाभ मिलेगा।

उन्होंने कहा कि मरीजों की सेवा ही परमात्मा की सबसे बड़ी सेवा है।  रोगी की सेवा को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है।  उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो इस धरती पर प्रत्येक मानव ही नहीं बल्कि प्रत्येक प्राणी ही अपना है इसलिए दूसरों को सुख पहुंचाकर जो आराम मिलता है उसकी अनुभूति किसी अन्य माध्यम से नहीं हो सकती। सारे धर्म ग्रंथों का सार मर्म यही है कि दूसरों के दुख का निवारण करो उनका दुख दूर करो क्योंकि अगर आपके पास शक्ति और सामर्थ्य  हो तो आपका कर्तव्य है कि आप अपने सामाजिक जिम्मेदारियां का सामाजिक दायित्व निभाते हुए दूसरों को राहत पहुंचाने का काम करें । आज सेवा संकल्प दिवस पर मैं आपसे यह आह्वान करता हूं आप जब अपने घर जाएं तो अपने आसपास कोई ना कोई सेवा कार्य जरूर करेंगे,  यह हमारा समाज के प्रति जिम्मेदारी और फर्ज है ।

संघ की प्रेरणा से जैन समाज ने यह मल्टी स्पेशिलिटी हस्पताल खोला है। निजी अस्पतालों में शुल्क की तुलना में यहां सभी सुविधा नाममात्र कीमत में उपलब्ध होगी। यहां गरीब मरीजों को कम दर पर चिकित्सा सुविधा मिलेगी। इसमें सर्जरी , बाल रोग , पीडीएट्रिक ,डेंटल , लैब , एक्सरे सहित अन्य सुविधाओं के साथ फिजियोथेरेपी सुविधा भी उपलब्ध रहेगी ताकि मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार किया जा सके। यह हस्पताल सभी आधुनिक मशीनों और सुविधाओं से सुसज्जित है। विशेषज्ञ मरीजों की मदद करेंगे और नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि मरीज ठीक होकर घर जाएं।योगा थेरेपी , कैंसर इलाज आदि भी उपलब्ध कराई जाएगी।


इस मौके पर अखिल भारतीय जैन कांफ्रेंस के राष्ट्रीय महामंत्री श्री अतुल जैन, श्री आत्म मनोहर जैन चैरिटेबल फाउंडेशन के सभी पदाधिकारी और सदस्य गण, उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों से उपस्थित हुए। इसके साथ  महा साध्वी श्री मीणा जी, करुणा जी, प्रेक्षा जी, डॉ शिवा जी, सुचेता, प्रमिला जी, जागृति जी आदि ने अपनी मंगल निश्रा कार्यक्रम को दी। इस अवसर पर सर संघचालक जी ने श्री पीयूष मुनि जी की धार्मिक, सामाजिक सेवाओं का अभिनंदन करते हुए उन्हें आदर की चादर ओढ़ाकर सम्मानित किया।