सीए के सीमित ऑडिट करने संबंधी आईसीएआई के नियमों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर

पीठ ने कहा उसने कानूनी अनिश्चितता के सिद्धांत के आधार पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द कर दिया है

सीए के सीमित ऑडिट करने संबंधी आईसीएआई के नियमों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को चार्टर्ड अकाउंटेंटों (सीए) के एक वित्त वर्ष के दौरान निर्दिष्ट संख्या (वर्तमान में अधिकतम 60) में टैक्स ऑडिट असाइनमेंट से अधिक स्वीकार करने से रोक लगाने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के नियम को बरकरार रखने का फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने आईसीएआई की ओर से जारी नियमों को बरकरार रखने के साथ ही यह भी माना कि आईसीएआई एक सीए द्वारा किए जाने वाले ऑडिट की संख्या बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होगा। पीठ ने कहा उसने कानूनी अनिश्चितता के सिद्धांत के आधार पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द कर दिया है।

शीर्ष अदालत ने माना कि यह नियम (8 अगस्त, 2008 को जारी परिषद दिशानिर्देश संख्या 1-सीए (7)/02/2008 के अध्याय VI का पैरा 6.0 और उसके बाद के संशोधन) संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत निश्चित किया गया है। नियम पेशे की प्रैक्टिस करने संबंधी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है। पीठ ने यह भी माना कि यह खंड (क्लाज) एक अप्रैल, 2024 से प्रभावी होगा। मामला यह है कि 1988 में इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की परिषद ने एक अधिसूचना जारी कर सदस्यों को एक वित्त वर्ष में आयकर अधिनियम की धारा 44एबी के तहत निर्दिष्ट संख्या से अधिक टैक्स ऑडिट असाइनमेंट स्वीकार करने पर रोक लगा दी थी। चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म के मामले में यह सीमा प्रत्येक भागीदार पर लागू होगी। यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि उक्त प्रावधान का अनुपालन न करने पर दोषी सदस्य को 'पेशेवर कदाचार' का दोषी ठहराया जाएगा।

चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम 1949 को वर्ष 2006 में संसद द्वारा संशोधित किया गया था, जिसके बाद आठ अगस्त 2008 को जारी दिशानिर्देशों द्वारा उक्त अधिसूचना को हटा दिया गया था। इन दिशानिर्देशों को देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर कई रिट याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी। कुछ याचिकाओं में विवादित दिशानिर्देशों के आधार पर शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को भी चुनौती दी गई थी। इस मामले में परस्पर विरोधी निर्णयों के कारण वर्ष 2020 में शीर्ष अदालत ने अंतिम और निर्णायक निर्धारण के लिए सभी याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित करने का संस्था की ओर से दायर आवेदन स्वीकार कर लिया था।