आंतक से पीड़ित कश्मीर के कईं पहलूओं को दिखा गया नाटक काली बर्फ
नाटक में आतंक से पीड़ित कश्मीर के कई पहलुओं से रूबरू करवाया गया। सुदूर कश्मीर में अब्दुल अपनी बीवी के साथ खुशी-खुशी रहता है
नाटक में आतंक से पीड़ित कश्मीर के कई पहलुओं से रूबरू करवाया गया। सुदूर कश्मीर में अब्दुल अपनी बीवी के साथ खुशी-खुशी रहता है। इन दोनों की खुशनुमा ज़िंदगी और भी रंगीन हो जाती है, जब अब्दुल की बीवी मां बनने वाली होती है। लेकिन उनके गांव में जेहादियों द्वारा बम फेंकने की घटना से स्थितियां पूरी तरह बदल जाती हैं। आर्मी और जेहादियों की इस लड़ाई में अब्दुल का होने वाला बच्चा मारा जाता है। इस घटना में अपने बच्चे को खोने से अब्दुल की बीवी पागलों की तरह बर्ताव करने लगती है। वह एक खिलौने को अपना बेटा मानने लगती है और अब्दुल भी उसकी खुशी के लिए उसे यही यकीन दिलाता है कि उसकी गोद में पल रहा खिलौना वास्तव में उनका अपना बच्चा ही है। इसी यकीन दिलाने की जद्दोजहद में वह बच्चे के इलाज के लिए डाॅक्टर को भी ले आता है। इस तरह पूरे नाटक में ही यकीन करने और ना करने के बीच की स्थितियां सामने आती हैं। जिस तरह मंदिरों में जाकर लोग मूर्तियों को अपना दुख दर्द सुनाते हैं और मजारों पर जाकर चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं क्योंकि उन लोगों का मूर्तियों और मजारों पर यकीन होता है। इसी तरह इस नाटक में भी मुख्य पात्रा का यकीन एक रबड़ की गुड़िया पर होता है कि वह उसका अपना बच्चा है और इसी की के सहारे वह अपना जीवन गुजारती है। कुल मिलाकर यह नाटक ऐसे सच से पर्दा उठाता है जो यकीन और झूठ के बीच झूलता हुआ प्रतीत होता है। नाटक के अंत में मुख्यअतिथि डा. रामेंद्र सिंह ने कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।
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