आंतक से पीड़ित कश्मीर के कईं पहलूओं को दिखा गया नाटक काली बर्फ

नाटक में आतंक से पीड़ित कश्मीर के कई पहलुओं से रूबरू करवाया गया। सुदूर कश्मीर में अब्दुल अपनी बीवी के साथ खुशी-खुशी रहता है

आंतक से पीड़ित कश्मीर के कईं पहलूओं को दिखा गया नाटक काली बर्फ
आंतक से पीड़ित कश्मीर के कईं पहलूओं को दिखा गया नाटक काली बर्फ
कुरुक्षेत्र- हरियाणा कला परिषद और उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज के संयुक्त सहयोग से आयोजित छह दिवसीय नाट्य रंग उत्सव की चैथी शाम नैनीताल के कलाकारों के नाम रही। जिसमें अदाकार सांस्कृतिक एवं नाट्य अकादमी के कलाकारों द्वारा सुभाष चंद्रा के निर्देशन और दीपक पुष्पदीप की परिकल्पना से सजा नाटक काली बर्फ द डार्क वैली का मंचन किया। इस अवसर पर  विद्या भारती संस्कृति शिक्षण संस्थान के निदेशक डा. रामेंद्र सिंह बतौर मुख्यअतिथि पहुंचे। कार्यक्रम से पूर्व हरियाणा कला परिषद के निदेशक संजय भसीन ने पुष्पगुच्छ भेंटकर मुख्यअतिथि का स्वागत किया। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत दीप प्रज्जवलित कर की गई। मंच का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी शिवकुमार किरमच ने किया। कश्मीर के मार्मिक दृश्यों को दिखाते हुए नाटक काली बर्फ में कलाकारों ने अभिनय से वास्तविकता का सजीव चित्रण किया। इस दुनिया के सारे सच यकीन पर खड़े होते हैं, आप यकीन करें तो सच अपने आप बन जाता है, वर्ना सच कुछ नहीं होता। इसी झूठ और सच के यकीन की खुलती हुई परतों पर आधारित रहा नाटक काली बर्फ़, द डार्क वैली।



नाटक में आतंक से पीड़ित कश्मीर के कई पहलुओं से रूबरू करवाया गया। सुदूर कश्मीर में अब्दुल अपनी बीवी के साथ खुशी-खुशी रहता है। इन दोनों की खुशनुमा ज़िंदगी और भी रंगीन हो जाती है, जब अब्दुल की बीवी मां बनने वाली होती है। लेकिन उनके गांव में जेहादियों द्वारा बम फेंकने की घटना से स्थितियां पूरी तरह बदल जाती हैं। आर्मी और जेहादियों की इस लड़ाई में अब्दुल का होने वाला बच्चा मारा जाता है। इस घटना में अपने बच्चे को खोने से अब्दुल की बीवी पागलों की तरह बर्ताव करने लगती है। वह एक खिलौने को अपना बेटा मानने लगती है और अब्दुल भी उसकी खुशी के लिए उसे यही यकीन दिलाता है कि उसकी गोद में पल रहा खिलौना वास्तव में उनका अपना बच्चा ही है। इसी यकीन दिलाने की जद्दोजहद में वह बच्चे के इलाज के लिए डाॅक्टर को भी ले आता है। इस तरह पूरे नाटक में ही यकीन करने और ना करने के बीच की स्थितियां सामने आती हैं। जिस तरह मंदिरों में जाकर लोग मूर्तियों को अपना दुख दर्द सुनाते हैं और मजारों पर जाकर चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं क्योंकि उन लोगों का मूर्तियों और मजारों पर यकीन होता है। इसी तरह इस नाटक में भी मुख्य पात्रा का यकीन एक रबड़ की गुड़िया पर होता है कि वह उसका अपना बच्चा है और इसी की के सहारे वह अपना जीवन गुजारती है। कुल मिलाकर यह नाटक ऐसे सच से पर्दा उठाता है जो यकीन और झूठ के बीच झूलता हुआ प्रतीत होता है। नाटक के अंत में मुख्यअतिथि डा. रामेंद्र सिंह ने कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।

छह दिवसीय नाटय रंग उत्सव का समापन आज, दिल्ली के कलाकार दिखाएगें नाटक कुछ तुम कहो कुछ हम कहें
हरियाणा कला परिषद और उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के सहयोग से आयोजित छह दिवसीय नाट्य रंग उत्सव का आज दिनांक 6 मार्च को समापन होगा, जिसमें दिल्ली के कलाकार श्याम कुमार के निर्देशन में नाटक कुछ तुम कहो कुछ हम कहें मंचित करेंगे। नाटक का समय सायं 6.30 बजे रहेगा। वहीं वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से कला कीर्ति भवन में आयोजित गांधी शिल्प बाजार का भी आज अंतिम दिन है। देश के लगभग 15 राज्यों के शिल्पकारों के हस्तशिल्पों से सजे इस मेले का समापन सायं 9 बजे करनाल से सांसद संजय भाटिया द्वारा किया जाएगा।