सभी दलों में चुनाव दर चुनाव बढ़ती जा रही है बागियों की संख्या

राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस ही आमने-सामने की स्थिति में हैं

सभी दलों में चुनाव दर चुनाव बढ़ती जा रही है बागियों की संख्या

पांच राज्यों:   विधानसभा से पहले अनेक राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं के बीच बड़ी उठापटक, खींचतान एवं चरित्रगत बदलाव देखने को मिल रहे हैं। राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस ही आमने-सामने की स्थिति में हैं, लेकिन टिकट बंटवारे को लेकर इन दोनों ही दलों में दोनों ही राज्यों में व्यापक बदलाव देखने को मिल रहा है। दोनों ही दलों में अपने आपको पार्टी का सर्वेसर्वा मानने वाले नेताओं की इस बार टिकट बंटवारे में दाल नहीं गली और वे अपने चेहतों को टिकट देने में नाकाम साबित हुए, जिससे दोनों ही दलों में भारी असंतोष एवं विद्रोह देखने को मिल रहा है। प्रदेश के शीर्ष नेताओं को भी टिकट न मिलने से बागी एवं बगावती स्वर उभर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या अब चुनाव का टिकट पाना या उसका कटना ही नेताओं के जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है? क्या पार्टी के प्रति बफादारी का गुब्बारा एक टिकट न मिलने की सूई से ही हवा शून्य हो गया है? एक प्रश्न और है कि टिकट क्या किन्हीं नेताओं की बपौती है, फिर बाकी कार्यकर्ताओं का क्या वजूद है जो सालों से पार्टी के लिये जी-जान लगाये होते हैं? क्या राजनीति अब सबसे ज्यादा लाभ और रौब का धंधा बन चुकी है? लोकतंत्र में जब मूल्य एवं सिद्धान्त कमजोर हो जाते हैं और सिर्फ निजी हैसियत को ऊंचा करना ही महत्वपूर्ण हो जाता है वह लोकतंत्र निश्चित रूप से कमजोर हो जाता है।