एनपीए कम हो रहा है और मुनाफा भी कमा रहे हैं बैंक: सीतारमण

अमेरिका और जर्मनी सहित दुनिया के विभिन्न बड़े देशों के बैकों की हालत खस्ता हो रही है वहीं भारत में बैंक फल फूल रहे हैं

एनपीए कम हो रहा है और मुनाफा भी कमा रहे हैं बैंक: सीतारमण

नयी दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज राज्यसभा में जोर देकर कहा कि देश में बैंकों की गैर निष्पादित संपत्ति निरंतर कम हो रही है और सभी बैंक फायदे की स्थिति में है तथा देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। श्रीमती सीतारमण ने मंगलवार को सदन में प्रश्नकाल के दौरान तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार के पूरक प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार की नीतियों के कारण गैर निष्पादित संपत्ति यानी एनपीए निरंतर कम हो रहा है तथा बैंकों की स्थिति मजबूत हो रही है क्योंकि वे मुनाफा कमा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अमेरिका और जर्मनी सहित दुनिया के विभिन्न बड़े देशों के बैकों की हालत खस्ता हो रही है वहीं भारत में बैंक फल फूल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 के अनुसार वाणिज्यिक बैंकों की गैर निष्पादित संपत्ति 0.95 प्रतिशत पर तो सरकारी बैंकों की गैर निष्पादित संपत्ति 1.24 प्रतिशत तक आ गयी है। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों के चलते कभी बुरी हालत में रही हमारी अर्थव्यवस्था अब तेज गति से बढ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दस वर्ष के शासनकाल में ‘फोन बैंकिंग’ के कारण बैंकों की हालत चरमरा गयी थी। उस समय बैंकों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता था और लोगों को बिना जांच और प्रक्रिया के ही नियमों का उल्लंघन कर टेलिफोन के माध्यम से रिण देने की सिफारिश की जाती थी। इससे बैंकों की व्यवस्था चरमरा गयी।

श्रीमती सीतारमण ने कहा कि जानबूझकर रिण नहीं चुकाने वाले ढाई हजार से भी अधिक लोगों के खिलाफ व्यापक स्तर पर कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा कि 13 हजार 978 खाताधारकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गयी है। सरफेसी अधिनियम के तहत भी 11 हजार 483 मामलों में कदम उठाये जा रहे हैं। सरकार की कार्रवाई के कारण 33 हजार 801 करोड़ रूपये की वसूली की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि इस तरह के लोगों के खिलाफ सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग निरंतर कड़े कदम उठा रही है। वित्त राज्य मंत्री भगवत कराड़ ने भी एक पूरक सवाल के जवाब में कहा कि दिवालिया प्रक्रिया से गुजरने वाली कंपनियों में ‘हेयर कट’ की राशि तय करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती क्योंकि यह सब निश्चित प्रक्रिया का हिस्सा है और इसका निर्णय साहुकारों की समिति यानी कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स लेती है।