वो मोतियों से करते हैं शायरों का मुंह बन्द : वामिक जौनपुरी
बंगाल ये पंक्तियां उर्दू अरब को समृद्धि तथा प्रगतिशील बनाने वाले इंकलाबी शायर वामिक जौनपुरी की हैं।
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जौनपुर: पूरब देश में डूग्गी बाजे, फैला सुख का काल , जिन हाथों ने मोती रोले आज वही कंगाल रे साथी भूका है बंगाल। ये पंक्तियां उर्दू अरब को समृद्धि तथा प्रगतिशील बनाने वाले इंकलाबी शायर वामिक जौनपुरी की हैं। शायर की 25वीं पुण्यतिथि 21 नवंबर को यहां मनायी जायेगी।जौनपुर शहर से लगभग आठ किमी दूर कजगांव की लालकोठी में 23 अक्टूबर 1909 को जमीदार घराने में बहुआयामी व्यक्तित्व के घनी सैय्यद अहमद मुजतबा (वामिक जौनपुरी ) का जन्म हुआ। विधि स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वामिक साहब कई सरकारी सेवाओं में रहें और 1969 में अवकाश ग्रहण किया। वामिक जौनपुरी ने उर्दू शायरी में केवल प्रगतिशीलता का संचार ही नहीं किया, बल्कि उन बिन्दुओं की भी तलाश की ,जो आम आदमी की बेहतर जिन्दगी के लिए जरूरी होते हैं।बंगाल में 1940 में भीषण अकाल पड़ा, लोग रोटी के लिये तरसने लगे, उस समय वामिक जौनपुरी ने भूंका बंगाल एक लम्बी कविता लिखकर अपना तथा सिराजे-हिन्द -जौनपुर का नाम शायरी की दुनियां में चमका कर अविस्मरणीय बनाया। वामिक साहब अपना आदर्श उपन्यासकार सम्राट मुंशी प्रेमचन्द तथा मश्हूर शायर सज्जाद जहीर उर्फ़ बन्ने भाई को मानते रहे। वामिक साहब से लोहा कैफी आजमी जैसे मशहूर शायर मानते थे। वह कहा करते थे कि मुझे मरने से डर नही लगता और अधिक जीने की ख्वाइश् भी नहीं रखते थे। उनकी शायरी मानवता के लिये पूरी तरह समर्पित थी।वामिक जौनपुरी की रचनाओं में भूंका बंगाल, मीना बाजार, चीखे , जरस, शब चराग, नीला परचम, सफरे नतनाम, मीरे कारवां, आवाम और संसार कुनफका आदि प्रमुख हैं। सन् उन्नीस सौ बानबे में अपनी आत्म कथा मुफ्तनी ना गुफ्तनी लिखने के बाद वह फिर से कलम नहीं चलाई।इंकलाबी शायर जनाब वामिक जौनपुरी ने अपनी नज्म में लिखा है कि वो मोतियों से करते हैं शायरों का मुंहबन्द , ऐसे में क्याहम अपने को बेआबरू करें । वामिक ने अपनी लेखनी और जिन्दगी में कभी किसी से समझौता नहीं किया परिवार के लोगों के लाख कोशिश भी उन्हें गांव की मिट्टी से दूर नहीं कर पायी। वामिक जौनपुरी को उनकी लेखनी पर काफी सम्मान भी मिला। वामिक साहब को मीर इंतियाज, सोबियत लैण्ड नेहरू एवार्ड, उत्तर प्रदेश अकादमी सम्मान एवं गालिब शायरी एवार्ड-1996 सहित अति विशिष्ठ सम्मानों से नवाजा गया।हिन्दुस्तान ही नहीं दुनियां भर में कई दश्क तक लोगों के दिलो-दिमाग पर राज करने वाले इस महान शायर ने 21 नवम्बर 1998 को दुनियां से बिदा ले लिया और शायरी की दुनियां में नाम चमकाने वाले इंकलाबी शायर वामिक जौनपुरी अब वर्षगांठ और पुण्यतिथि पर ही याद किये जाते हैं।