बांका : ‘दादा’ के ‘नगाड़े’ ने उड़ाये विरोधियों के ‘तोते’

आजादी से पहले गिधौर राजघराने से जुड़े कुमार सुरेन्द्र सिंह यहां के सामंत हुआ करते थे

बांका : ‘दादा’ के ‘नगाड़े’ ने उड़ाये विरोधियों के ‘तोते’

पटना : वर्ष 2009 में बिहार में बांका संसदीय सीट पर हुये चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी दिग्विजय सिंह ने अपने विरोधियों को धूल चटा दी थी। आजादी से पहले बिहार में रियासत हुआ करती थी। गिधौर रियासत में एक जमींदारी हुआ करती थी, 'लाल कोठी'। आजादी से पहले गिधौर राजघराने से जुड़े कुमार सुरेन्द्र सिंह यहां के सामंत हुआ करते थे। उन्हीं के घर पर दिग्विजय सिंह का जन्म हुआ। जब श्री सिंह दिल्ली की प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे तब वहां वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) का दबदबा हुआ करता था। इसके खिलाफ समाजवादी विचारधारा के छात्रों ने अपना नया संगठन खड़ा किया, 'समाजवादी युवजन सभा'। दिग्विजय सिंह इसी संगठन का हिस्सा बने। समाजवादी विचारधारा वाले दिग्विजय सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर एवं जाॅर्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं के साथ एवं उनके सानिध्य में रहकर अपनी राजनीति की शुरुआत की थी।

वर्ष 1991 के आम चुनाव में बांका संसदीय सीट से दिग्विजय सिंह ने अपनी राजनीति की शुरूआत की थी। चंद्रशेखर की सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे श्री सिंह को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इससे पूर्व वर्ष 1989 मे ही दिग्विजय सिंह ने बांका से चुनाव लड़ने का मन बनाया था लेकिन बात नहीं बन सकी। हुआ कुछ यूं था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी.सिंह) के पुत्र अजय प्रताप सिंह की शादी बांका में हुयी थी। वी.पी.सिंह चाहते थे कि बांका से जनता दल का टिकट उनके समधी प्रताप सिंह को मिले। हालांकि चंद्रशेखर, दिग्विजय सिंह के पक्ष में थे। बाद में यह तय किया गया कि प्रताप सिंह को एक शर्त पर बांका से जनता दल का टिकट दिया जा सकता है, बशर्ते दिग्विजय सिंह को बिहार से राज्यसभा में भेजा जाये। वर्ष 1989 में प्रताप सिंह बांका सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने। बाद में दिग्विजय सिंह भी बिहार के कोटे से राज्यसभा पहुंच गये।

वर्ष 1996 में भी श्री सिंह ने समता पार्टी के टिकट पर बांका संसदीय सीट पर अपनी किस्मत आजमायी, लेकिन इस बार भी उन्हें कामयाबी मयस्सर नहीं हुयी। वर्ष 1999 में दिग्विजय सिंह ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के टिकट पर जीत हासिल की। निर्दलीय प्रत्याशी गिरधारी यादव दूसरे जबकि राजद प्रत्याशी शकुनी चौधरी तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1999 में जीत के बाद श्री सिंह को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेलवे राज्यमंत्री, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के राज्य मंत्री, विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री नियुक्त किया गया।

वर्ष 2009 के आम चुनाव में जदयू ने दिग्विजय सिंह को बांका संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देने का फैसला किया। जदयू ने तर्क दिया था कि परिसीमन के बाद बांका सीट दिग्विजय सिंह के लिये मुफीद नहीं है। जब श्री सिंह को जदयू का टिकट नहीं मिला तो वह इतना गुस्सा हुए कि अपनी ही पार्टी जदयू से बगावत कर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पढ़े लिखे समाजवादी विचार वाले दिग्विजय सिंह कहां डिगने वाले थे, उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुली चुनौती दे दी कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार में दम है तो चुनाव हराकर दिखाये। इस चुनाव के दौरान श्री सिंह और श्री नीतीश कुमार को एक-दूसरे के सामने खड़े देख हर कोई हैरान था।

वर्ष 1994 में समता पार्टी को साथ-साथ खड़ा करने वाले दिग्विजय सिंह और नीतीश कुमार वर्ष 2009 आते-आते एक-दूसरे के सामने खड़े थे। इस चुनाव में दिग्विजय को ‘नगाड़ा’ छाप चिन्ह मिला। एक चुनावी सभा में मंच पर दिग्विजय के चढ़ते ही लोगों ने 'दिग्विजय दादा जिंदाबाद', नारा लगाना शुरू किया, फिर लोग उन्हें 'दादा दादा' (बड़ा भाई) कहकर पुकारने लगे। लोगों में अपने प्रति इस प्रेम को देखकर श्री सिंह भावुक हो गये। इसके बाद जब उन्होंने अपना भाषण देना शुरू कर दिया तो भीड़ उत्साह से भर गया। उन्होंने मंच के पीछे लगे पोस्टर की तरफ इशारा किया और फिर तेवर में बोले, “ये नगाड़ा विद्रोह का नगाड़ा है। हमें इसे इतना बजाना है कि विरोधियों की नींद हराम हो जाये। मेरा जन्म चाहे अपनी मां की कोख से हुआ हो लेकिन मेरा राजनीतिक जन्म बांका की धरती से हुआ है। समता पार्टी को मैंने जॉर्ज साहब के साथ मिलकर खड़ा किया। वो मेरा बनाया हुआ घर है। मुझे मेरे घर से बाहर निकालने वाले कौन लोग हैं। मैंने अपनी मर्जी से जनता दल (यू) छोड़ी है।”

वर्ष 2009 में बांका के चुनाव में दिग्विजय सिंह नगाड़ा बजाकर चुनाव प्रचार करते थे। वर्ष 2007 में इम्तियाज़ अली के निर्देशन में बनी शाहिद कपूर और करीना कपूर अभिनीत फिल्म 'जब वी मेट' प्रदर्शित हुयी थी। इसका एक गाना लोगों की जुबान पर चढ़ गया था, 'नगाड़ा-नगाड़ा-नगाड़ा बजा। वर्ष 2009 में यही गाना दिग्विजय सिंह के चुनाव प्रचार में काम आ रहा था। श्री सिंह के समर्थक सहित अधिकांश व्यक्ति के मोबाइल में नगाड़ा बजा गाने का रिंगटोन बजता था, जो बांका लोकसभा क्षेत्र में लोकप्रिय हो गया था। दिग्विजय सिंह की जीत के बाद से यहां सभी चुनाव में हर निर्दलीय प्रत्याशी नगाड़ा चुनाव चिह्न को पहली प्राथमिकता देते हैं।

इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी अपने वर्तमान सांसद गिरधारी यादव का टिकट काटकर उनकी जगह जयप्रकाश नारायण यादव को टिकट दिया था। गिरधारी यादव ने चुनाव से पहले राजद का साथ छोड़ कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया और मैदान में उतर गये। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इज्जत दाव पर लगी हुई थी। जदयू ने श्री सिंह की जगह तत्कालीन नीतीश सरकार में सामाजिक कल्याण मंत्री दामोदर राउत को टिकट दिया। श्री रावत उस समय झाझा सीट से विधायक थे। इस तरह बांका सीट पर चौकोर मुकाबले की बिसात बिछाई जा चुकी थी। इस चुनाव में श्री सिंह का मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी गिरधारी यादव, राजद प्रत्याशी जयप्रकाश नारायण यादव और जदयू प्रत्याशी दामोदर रावत से हुआ, बावजूद इसके दिग्वजिय सिंह ने अपने प्रतिद्धंद्वियों के तोते उड़ा दिये। बांका की जनता ने दिग्विजय सिंह काे विजय का तिलक लगाया। चुनाव जीतकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े दिग्विजय सिंह सदन पहुंचे।

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण की बांका संसदीय सीट पर 26 अप्रैल को मतदान होगा। इस बार के चुनाव में वर्तमान सांसद गिरधारी यादव, जयप्रकाश नारायण यादव तो हैं, नहीं है तो ‘नगाड़े की गूंज’ और वर्ष 2009 में बांका के ‘किला’ को अपने दम पर ‘फतह’ करने वाले ‘समाजवादी जननायक’ दिग्विजय सिंह!