शिंदे सरकार पर क्यों भडक़े किसान
सीमए बोले-15 दिनों में समस्याओं का होगा समाधान
मुंबई : भारत कृषि प्रधान देश है। यही कारण है कि देश की राजनीति में किसान और उनके मुद्दे महत्वपूर्ण रहते हैं। सभी राजनीतिक दलों की ओर से उन्हें साधने की कोशिश की जाती है। किसानों की ही बदौलत देश में कई सरकारें बनी हैं और कई सरकार गिर भी कई है। वर्तमान में भी देखें तो किसानों को लेकर लगातार कई मामले सामने आते हैं। किसानों के जीवन को सुधारने के लिए सरकारों की ओर से लगातार दावे तो होते रहे हैं लेकिन इसमें बहुत ज्यादा उन्नति देखने को नहीं मिला है। इन सबके बीच महाराष्ट्र में भी किसानों का मुद्दा फिलहाल सामने आया है।
अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों से महाराष्ट्र के मंत्री दादाजी भूसे ने बात की। इस पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की भी प्रतिक्रिया गई। उन्होंने कहा कि मैंने आज किसानों को बुलाया था। उनकी (राज्य मंत्री) दादा भूसे के साथ बैठक हुई है। 15 दिनों में उनकी समस्याओं की समीक्षा कर समाधान निकाला जायेगा। किसानों के विरोध प्रदर्शन पर एनसीपी नेता रोहित पवार ने कहा, ‘अगर सरकार ने (मंत्रालय में सुरक्षात्मक जाल पर) कूदने से पहले किसानों की आवाज सुनी होती, तो आज ऐसी बात नहीं होती। सरकार को सुनना चाहिए बावजूद इसके कि मंत्रालय में इस तरह का विरोध प्रदर्शन करना ठीक नहीं है, किसानों को हो रही समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति खतरनाक है।’
प्याज की कीमतों पर नियंत्रण के लिए निर्यात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगाने से महाराष्ट्र की राजनीति गर्म हो गई थी। किसानों में नाराजगी बढ़ गई थी। यही कारण रहा कि कृषि मंत्री धनंजय मुंडे आनन-फानन में दिल्ली पहुंचे और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की। अड़चन को दूर करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पीयूष गोयल के बीच लंबी बातचीत हुई। सरकार ने आनन-फानन में 20 लाख टन प्याज खरीदने का निर्णय लिया। कहा गया कि किसानों से 2410 प्रति क्विंटल के भाव से प्याज खरीदी जाएगी। इससे किसानों की थोड़ी नाराजगी भी कम हुई। जापान में मौजूद उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी हरकत में आए। धनंजय मुंडे दिल्ली से कोई सकारात्मक संदेश लेकर महाराष्ट्र पहुंचते, उससे पहले ही देवेंद्र फडणवीस में फैसलों का ऐलान कर दिया। इससे फडणवीस के कद का भी अंदाजा लग गया। इससे पहले किसानों के लिए काफी योजनाओं को बजट में शामिल किया गया था। खेती के लिए लोन से लेकर फसल की बीमा गारंटी तक की योजनाएं इसमें शामिल है। इसके साथ ही राज्य सरकार की ओर से हर साल छह हजार रुपए की राशि की मदद किसानों के लिए प्रस्तावित की गई है।
कुल मिलाकर देखें तो राजनीति में किसानों की भूमिका हमेशा अहम रही है। इससे से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, आजादी के 75 साल बाद भी किसानों के जीवन में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। अपनी मांगों को लेकर आज भी अगर उन्हें प्रदर्शन करना पड़ रहा है तो जाहिर सी बात है कि स्थितियां उनके लिए बहुत ज्यादा नहीं बदली है। हालांकि, प्रजातंत्र में सब को अधिकार मिला हुआ है और अपने मतदान के जरिए ही हर कोई अपने भविष्य का फैसला कर सकता है।